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________________ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक (६४) क्रम से ( ये चारों राजधानियाँ ) एक लाख ( योजन) विस्तार वाली हैं तथा इनकी सम्पूर्ण परिधि उससे तीन गुणा अधिक है। (६५-६६) पश्चिम-दक्षिण दिशा में जो रतिकर पर्वत है उसकी चारों दिशाओं में शक्र-अग्रमहिषियों की ये (चार) चार राजधानियाँ हैं--(१) पूर्व दिशा में भूता, (२) दक्षिण दिशा में भूतावतंसा, (३) पश्चिम दिशा में मनोरमा तथा (४) उत्तर दिशा में अग्निमाली । (६७-६८) पश्चिम-उत्तर दिशा में ( जो) रतिकर पर्वत है उसकी चारों दिशाओं में ईशान-अग्रमहिषियों की ये ( चार ) राजधानियाँ हैं(१) पूर्व दिशा में सौमनसा, (२) दक्षिण दिशा में सुसीमा, (३) पश्चिम दिशा में सुदर्शना तथा (४) उत्तर दिशा में अमोघा । (६९-७०) पूर्व-उत्तर दिशा में (जो) रतिकर पर्वत है उसकी चारों दिशाओं में पतले शाल वृक्षों से परिवेष्टित ईशान-अग्रमहिषियों को ये ( चार ) राजधानियाँ हैं-(१) पूर्व दिशा में रत्नप्रभा, (२) दक्षिण दिशा में रत्ना, (३) पश्चिम दिशा में सर्वरत्ना तथा (४) उत्तर दिशा में रत्नसंचया । (७१. कुण्डल द्वीप) (७१) कुण्डल द्वीप का विस्तार दो हजार छ: सौ इक्कीस करोड़ चवालीस लाख योजन है। (७२-७५. कुण्डल पर्वत) (७२) कुण्डल द्वीप के मध्य में कुण्डल पर्वत नामक उत्तम पर्वत है । प्राकार के समान आकार वाला यह पर्वत कुण्डल द्वीप को ( अन्य द्वीपों से ) विभाजित करता है। (७३) कुण्डल पर्वत बयालीस हजार ( योजन ) ऊँचा तथा नीचे भूमि तल में समान रूप से एक हजार ( योजन) गहरा है। (७४) ( कुण्डल पर्वत ) अधो भाग में दस सौ बावीस योजन विस्तार वाला तथा मध्य भाग में सात सौ तेवीस योजन विस्तार वाला है। (७५) ( कुण्डल पर्वत ) शिखर-तल पर चार सौ चौबीस योजन विस्तार वाला है । अब मैं इसके ऊपर ( स्थित ) शिखरों ( के विषय ) में अनुक्रम से कहता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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