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द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक (७६-८३. कुण्डल पर्वत के ऊपर सोलह शिखर ) (७६-७८) ( कुण्डल पर्वत के ऊपर ) चार शिखर पूर्व दिशा में, चार
दक्षिण दिशा में, चार पश्चिम दिशा में, तथा चार ही शिखर उत्तर दिशा में हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-(१) वज्रप्रभ, (२) वज्रसार, (३) कनक, (४) कनकोत्तम, (५) रक्तप्रभ, (६) रक्तधातु, (७) सुप्रभ, (८) महाप्रभ, (९) मणिप्रभ, (१०) मणिहित, (११) रुचक, (१२) एकवतंसक, (१३) स्फटिक, (१४) महास्फटिक, (१५) हिमवत् और (१६) मंदिर।
(७९) इन शिखरों की ऊँचाई पाँच सौ योजन है तथा अधो भाग में पांच
सौ योजन ही इनका विस्तार है । (८०) (ये) शिखर मध्य में तीन सौ पचहत्तर योजन तथा शिखर-तल पर
ढाई सौ (योजन) विस्तार वाले हैं। (८१) (इन) शिखरों की परिधि अधोभाग में एक हजार पाँच सौ इक्यासी
(योजन) से कुछ अधिक है। (८२) (इन) शिखरों की परिधि मध्य भाग में एक हजार एक सौ छियासी
(योजन) से कुछ कम है। (८३) (इन) शिखरों की परिधि शिखर-तल पर सात सौ इक्यानवें
(योजन) से कुछ कम है।
(८४-८६. कुण्डल पर्वत के शिखरों पर सोलह नागकुमारदेव)
(८४-८६) इन शिखरों पर पल्योपम स्थिति वाले (सोलह) नागकुमार देव
रहते हैं, मैं उनकी नामावली को अनुक्रम से कहता हूँ-(१) त्रिशीर्ष, (२) पंचशीर्ष, (३) सप्तशीर्ष, (४) महाभुज, (५) पद्मोत्तर, (६) पदमसेन, (७) महापद्म, (८) वासुकि, (९) स्थिरहृदय, (१०) मृदुहृदय, (११) श्रीवत्स, (१२) स्वस्तिक, (१३) सुन्दरनाग, (१४) विशालक्ष, (१५) पाण्डुरंग और (१६) पाण्डुकेशी।
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