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द्वितीयः समुद्देशः
४९ त्यर्थः । उभयत्रापि प्रदीपो दृष्टान्तः । यथा प्रदीपस्यातज्जन्यस्यातदाकारधारिणोऽपि तत्प्रकाशकत्वम् , तथा ज्ञानस्यापीत्यर्थः ।।
ननु यद्यर्थादजातस्यार्थरूपाननुकारिणो ज्ञानस्यार्थसाक्षात्कारित्वं तदा नियतदिग्देशकालवर्तिपदार्थप्रकाशप्रतिनियमे हेतोरभावात्सर्वं विज्ञानमप्रतिनियतविषयं स्यादिति शंकायामाहस्वावरणक्षयोपशमलक्षणयोग्यतया हि प्रतिनियतमर्थं
व्यवस्थापयति ॥९॥ स्वानि च तान्यावरणानि च स्वावरणानि । तेषां क्षय' उदयाभावः। तेषामेव सदवस्था उपशमः,२ तावेव लक्षणं यस्या योग्यतायास्तया हेतुभूतया प्रतिहै। जैसे-कौओं से दहो की रक्षा करो, ऐसा कहने पर गृद्धों से भी रक्षा करो, केवल कौओं से नहीं। इसी अतदाकारधारित्व उपलक्षण योग्य है। अतज्जन्यता और अतदाकारता दोनों में दीपक का दृष्टान्त है। जैसे दीपक पदार्थ से नहीं उत्पन्न होने पर भी पदार्थ का आकार न धारण करने पर भी पदार्थ का प्रकाशक होता है, उसी प्रकार ज्ञान भी पदार्थ से उत्पन्न न होने पर भी और पदार्थ का आकार धारण न करके भी पदार्थों को जानता है।
बौद्ध-यदि अर्थ से नहीं उत्पन्न हए और अर्थ के आकार को भी नहीं धारण करने वाले ज्ञान के अर्थसाक्षात्कारित्व है तो नियतदिशावर्ती, नियतदेशवर्ती और नियतकालवर्ती पदार्थों को जानने के प्रतिनियम में तदुत्पत्ति और ताप्य हेतु के अभाव से सभी ज्ञान अप्रतिनियत विषय वाले हो जायँगे? (तब प्रत्येक ज्ञान, अतीत, अनागत, व्यवहित, दूरवर्ती तथा अन्तरित पदार्थों को जानने लगेगा)। इस प्रकार की शङ्का होने पर कहते हैं।
सत्रार्थ-अपने आवरण के क्षयोपशम लक्षण वाली ( अर्थग्रहण शक्ति रूप ) योग्यता से प्रत्यक्ष प्रमाण प्रतिनियत पदार्थों के जानने को व्यवस्था करता है ।।९।।
अपने आवरण स्वावरण हैं। उनके उदय के अभाव को क्षय कहते हैं । अनुदय प्राप्त उन्हीं कर्मों की सद् अवस्था उपशम है। वही लक्षण जिस १. मतिज्ञानावरणवीर्यान्तरायकर्मद्रव्याणां अनुभागस्य सर्वघातिस्पर्धकानामुदया
भावः क्षयः । २. तेषामेवानुदयप्राप्तानां सदवस्था उपशमः ।
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