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________________ ४८ प्रमेयरत्नमालायां केशोण्डुकज्ञानम् । नानुविधत्ते च ज्ञानमर्थान्वयव्यतिरेकाविति । तथाऽऽलोकेऽपि । एतावान् विशेषस्तत्र नक्तञ्चरदृष्टान्त इति । नक्तञ्चरा मार्जारादयः । ननु विज्ञानमर्थजनितमर्थाकारं चार्थस्य ग्राहकम्; तदुत्पत्तिमन्तरेण विषयं प्रति नियमायोगात् । तदुत्पत्तेरालोकादावविशिष्टत्वात्ताद्रूप्यसहिताया एव तस्यास्तं प्रति नियमहेतुत्वात्, भिन्नकालत्वेऽवि ज्ञान-ज्ञेययोर्ग्राह्यग्राहकभावाविरोधात् । तथा चोक्तम् भिन्नकालं कथं ग्राह्यमिति चेद् ग्राह्यतां विदुः । हेतुत्वमेव युक्तिज्ञास्तदाकारार्पणक्षमम् ॥४॥ इत्याशङ्कायामिदमाह अतञ्जन्यमपि तत्प्रकाशकं प्रदीपवत् ॥८॥ अर्थाजन्यमप्यर्थप्रकाशकमित्यर्थः । अतज्जन्यत्वमुपलक्षणम् । तेनातदाकारमपी करता है, वह तत्कारणक नहीं है । जैसे केश में होने वाला उण्डुक का ज्ञान अर्थ के साथ अन्वय व्यतिरेक को धारण नहीं करता। आलोक में भो ज्ञान के साथ अन्वय व्यतिरेक सम्बन्ध नहीं है। इतना विशेष है कि यहाँ नक्तञ्चर दृष्टान्त है। मार्जार आदि नक्तञ्चर हैं। आदि शब्द से अंजन से संस्कृत चर भी ग्रहण करना चाहिए। ___ योगाचार बौद्ध का कहना है कि अर्थ से जनित और अर्थाकार विज्ञान अर्थ का ग्राहक है; क्योंकि तदुत्पत्ति के बिना विषय के प्रति कोई नियम नहीं बन सकता। तदुत्पत्ति को ही नियामक मानने पर तदुत्पत्ति आलोक आदि में भी समान है। अतः ताद्रप्य सहित तदुत्पत्ति को ही विषय के प्रति नियामक माना गया है। यदि माना जाय कि ज्ञान और ज्ञेय भिन्न क्षणवर्ती हैं तो भी ज्ञान और ज्ञेय में ग्राम और ग्राहक भाव का विरोध नहीं होगा। जैसा कि कहा गया है श्लोकार्थ-यदि कोई पूछे कि भिन्नकालवर्ती पदार्थ ग्राह्य कैसे हो सकता है तो युक्ति के जानने वाले आचार्य ज्ञान में तदाकार के अर्पण करने की क्षमता वाले हेतुत्व को हो ग्राह्यता कहते हैं ॥ ४॥ इस प्रकार शङ्का होने पर यह कहते हैं सूत्रार्थ-अर्थ से नहीं उत्पन्न होने पर भी ( अर्थ प्रकाशन स्वभाव होने के कारण ) ज्ञान अर्थ का प्रकाशक होता है, दीपक के समान ॥ ८ ॥ ज्ञान अर्थ से जन्य न होने पर भी अर्थ का प्रकाशक होता है। अतज्जन्यता उपलक्षण है, उससे अतदाकारधारित्व रूप अर्थ का ग्रहण होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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