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प्रमेयरत्नमालायां
पादनपरत्वेनापि दृश्यमानत्वात् । यथा श्वेतो धावतीत्युक्ते 'श्वा इतो धावति, श्वेतगुणयुक्तो धावति' इत्यर्थद्वयप्रतीतिः । तत्रादिवाक्यस्य नमस्कारपरताऽभिधीयते—– अर्थस्य हेयोपादेयलक्षणस्य संसिद्धिज्ञप्तिर्भवति । कस्मात् ? प्रमाणात् । अनन्तचतुष्टयस्वरूपान्तरङ्गलक्षणा, समवसरणादिस्वभावा बहिरङ्गलक्षणा लक्ष्मीर्मा इत्युच्यते । अणनमाण : ' शब्दः, मा च आणश्च माणौ । प्रकृष्टो माणौ यस्यासौ प्रमाणः । हरि-हरायसम्भविविभूतियुक्तो दृष्टेष्टाविरुद्धवाक् च भगवान्नर्हन्नेवाभिधीयत इत्यसाधारण गुणोपदर्शनमेव भगवतः संस्तवनमभिधीयते । तस्मात् प्रमाणादधिभूतादर्थसंसिद्धिर्भवति, तदाभासाच्च हरि-हरा देरर्थ सं सिद्धिर्न भवति इति हेतोः सर्वज्ञ-तदाभासयोर्लक्ष्म लक्षणमहं वक्ष्ये – 'सामग्रीविशेषेत्यादिना' ।
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अथेदानीमुपक्षिप्तप्रमाणतत्त्वे स्वरूप सङ्ख्या-विषय-फललक्षणासु चतसृषु
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प्रतिपादन करने वाले देखे जाते हैं । जैसे – 'श्वेतो धावति' ऐसा कहे जाने पर " श्वा - (कुत्ता) इधर दौड़ता है" और 'श्वेत गुण युक्त' दौड़ता है, इस प्रकार दो अर्थों को प्रतीति होती है । आदि वाक्य की नमस्कारपरता कही जाती है— हेयोपादेय रूप लक्षण वाले पदार्थ की संसिद्धि-ज्ञप्ति है । किससे ? प्रमाण से । अनन्त चतुष्टय रूप अन्तरङ्ग लक्षण वाली और समवशरणादिस्वभावा बहिरङ्ग लक्षगा लक्ष्मी 'मा' कही जाती है । जिसके द्वारा कथन किया जाता है वह 'अणनमाणः शब्द:' अथवा 'अण्यते शब्द्यते येनासावाणः' व्युत्पत्ति के अनुसार आण अर्थात् दिव्यध्वनि कही जाती है । 'मा च आणश्च माणौ' इस प्रकार द्वन्द्व समास करने पर माण शब्द बनता है । 'प्रकृष्टौ माणौ यस्यासौ प्रमाणः' यह प्रमाण शब्द का विग्रह है । प्र = प्रकृष्ट, माणः – अन्तरंग, बहिरंग लक्ष्मी और दिव्यध्वनि जिसके पायी जाय अर्थात् अरहन्त देव | इस प्रकार प्रमाण शब्द से हरि, हर आदि में जो विभूति असम्भव है तथा जिनकी वाणी प्रत्यक्ष और अनुमान से विरुद्ध नहीं है, ऐसे भगवान् अर्हन्त देव ही कहे जाते । इस प्रकार असाधारण गुणों को प्रदर्शित करना ही भगवान् का संस्तवन कहा जाता है | अतः अवधिभूत ( प्रथम कारणभूत ) प्रमाण से अर्थ की संसिद्धि होती है और प्रमाणाभास - हरि हरादिक से अर्थ को संसिद्धि नहीं होती है । अतः सर्वज्ञ और सर्वज्ञाभास का लक्षण मैं कहूँगा - सामग्री विशेष इत्यादि
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अब आगे जिसका कथन प्रारम्भ किया है, उस प्रमाण तत्त्व के विषय में स्वरूप, संख्या, विषय और फल लक्षण वाली चार विप्रतिपत्तियों के
१. अण्यते शब्द्यते येनासावाणः, दिव्यध्वनिरित्यर्थः ।
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