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________________ प्रस्तावना अकलंकदेव और माणिक्यनन्दि से अनन्तवीर्य इतने अधिक प्रभावित थे कि प्रत्येक समुद्देश के अन्त में उन्होंने कहीं संक्षिप्त पदों द्वारा तो कहीं स्पष्ट रूप से उनका स्मरण किया है। इससे उनके कृतज्ञता रूप महान् गुण की सूचना मिलती है। प्रमेयरत्नमाला के प्रथम समुद्देश में प्रमाण का स्वरूप, द्वितीय में प्रत्यक्ष प्रमाण, तृतीय में परोक्ष प्रमाण, चौथे में प्रमाण का विषय, पाँचवें में प्रमाण का फल तथा षष्ठ समुद्देश में प्रमाणाभास आदि का विशद विवेचन किया गया है। अनन्तवीर्य का वेदुष्य-लघु अनन्तवीर्य ने भारतीय दर्शन की प्रत्येक शाखा के मूल ग्रन्थों का भलीभाँति अध्ययन किया था। जैन न्याय ग्रन्थों में आचार्य समन्तभद्र, अकलंक, माणिक्यनन्दी और प्रभाचन्द्र की कृतियों ने उन्हें विशेष प्रभावित किया था। उन्होंने विभिन्न दर्शनों के ग्रन्थों का उद्धरण अपनी प्रमेयरत्नमाला में देकर पूर्व पक्ष को स्पष्ट कर, विभिन्न वादों की समीक्षा की है। उनके द्वारा उद्धृत प्रमुख ग्रन्थ हैं-धर्मकीर्ति का प्रमाणवात्तिक, कुमारिल का -मीमांसा श्लोकवात्तिक, प्रभाचन्द्र का प्रमेयकमलमार्तण्ड, व्यासकृत महाभारत, मण्डन मिश्रकृत ब्रह्मसिद्धान्त, अकलंककृत लघीयस्त्रय, ईश्वर कृष्ण कृत सांख्यकारिका, ऋग्वेद, दिङ्नाग कृत प्रमाणसमुच्चय, विद्यानन्द कृत पत्रपरीक्षा, श्वेताश्वरोपनिषद्, पात्रकेशरी स्तोत्र तथा बृहदारण्यक । इनके अतिरिक्त उन्होंने कहाँ-कहाँ से विचार ग्रहण कर अपनी प्रमेयरत्नमाला की रचना की होगी, इस पर स्वतन्त्र रूप से शोध आवश्यक है। इन सबसे उनके वैदुष्य की भलीभाँति जानकारी प्राप्त होती है । अनन्तवीर्य के वाक्य बड़े संक्षिप्त और गूढ़ अर्थ वाले हैं। उन्हें समझना साधारण व्यक्ति का काम नहीं है। इसके लिए पद-पद पर टिप्पण की सहायता की अपेक्षा होती है । इस दृष्टि से वह टिप्पण, जिसके कर्ता लघुसमन्तभद्र कहे जाते हैं, बहुत उपयोगी है। टिप्पणकार ने ग्रन्थकार के हार्द को अच्छी तरह खोलकर रख दिया है । जैन न्याय के क्षेत्र में प्रभाचन्द्र रूपी चन्द्र के बाद वे चमकते हुए सितारे हैं, जिन पर न्यायविद्या के अध्येताओं को गर्व है । अनन्तवीर्य और भारतीय दर्शन ऊपर कहा जा चुका है कि लघु अनन्तवीर्य भारतीय दर्शनों के तलस्पर्शी अध्येता थे। उनके विभिन्न दर्शनों के अध्ययन सम्बन्धी एक संक्षिप्त सर्वेक्षण यहाँ प्रस्तुत है १. वेद-प्रमेयरत्नमाला में ऋग्वेद के दशम मण्डल के पुरुषसूक्त की एक पंक्ति उद्धृत की गयी है। यह सूक्त ऋग्वेद के दार्शनिक सूक्तों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । पंक्ति इस प्रकार है-"पुरुष एवेदं यद्भूतं यच्च भाव्यम्" इसे परम ब्रह्म के प्रतिपादन करने वाले आगम वाक्य के रूप में पूर्वपक्ष के रूप में उद्धृत किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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