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________________ प्रमेयरत्नमालायां प्रमाणनिर्णय एक लघुकाय ग्रन्थ है। इसके चार प्रकरण है-१. प्रमाणनिर्णय २. प्रत्यक्ष निर्णय ३. परोक्षनिर्णय ४. आगम निर्णय । अभयदेव ___ अभयदेव का समय विक्रम की दसवीं सदी उत्तरार्द्ध से ग्यारहवीं सदी का पूर्वार्द्ध प्रमाणित होता है। इन्होंने सिद्धसेन के सन्मतितर्क पर टीका लिखी । सिद्धसेन, माणिक्यनन्दि और प्रभाचन्द्र की प्रशस्तियों में अभयदेव का निर्देश प्रद्युम्नसूरि के शिष्य और वादमहार्णव नामक तर्कग्रन्थ के रचयिता तार्किक विद्वान् के रूप में किया गया है । पं० सुखलालजी और पं० बेचरदासजी ने सन्मतितर्क, प्रथम भाग को गुजराती प्रस्तावना में लिखा है कि अभयदेव की सन्मतितर्क टोका में सैकड़ों दार्शनिक ग्रन्थों का दोहन किया गया है। सामान्य रूप से कुमारिल का मीमांसा श्लोकवार्तिक, शान्तरक्षित कृत तत्त्वसंग्रह पर कमलशील की पंजिका और दिगम्बराचार्य प्रभाचन्द्र के प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र का प्रतिबिम्ब मुख्य रूप से इस टीका में है। वादिदेवसूरि वादिदेवसूरि ( ई० १०८६-११३० ) ने अकलङ्क वचनाम्भोधि से उद्धृत परीक्षामुखसूत्र के आधार से प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार की रचना की तथा उसकी स्याद्वाद रत्नाकर टीका भी स्वयं लिखी । परीक्षामुखसूत्र के विषय के साथ इनमें नयपरिच्छेद और वादपरिच्छेद नए जोड़े गए हैं। शास्त्रान्तरों के नामोल्लेख पूर्वक उद्धरण इस ग्रन्थ की अपनी एक विशेषता है और उस पर से भारतीय दर्शनशास्त्र के विविध ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों की सूची निर्मित की जा सकती है । अनन्तवीर्य ____ अनन्तवीर्य नाम के अनेक विद्वान् आचार्यों की सूची शिलालेखों तथा ग्रन्थ प्रशस्तियों से प्राप्त होती है। इनमें से कुछ का विवरण डॉ०ने मिचन्द्र शास्त्री ने भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा ( भाग-३, पु० ३९-४० ) पर दिया है। अकलंक सूत्र के वृत्तिकार दो अनन्तवीर्य हैं-- एक रविभद्रपादोपजीवी और दूसरे इन्हीं अनन्तवोर्य द्वारा उल्लिखित सिद्धिविनिश्चय के प्राचीन त्याख्याकार अनन्तवीर्य, जिन्हें हम वृद्ध अनन्तवीर्य कह १. सन्मति तर्क ( पं० सुखलालजी द्वारा लिखित प्रस्तावना ), पृ० ७२ । २. जैन न्याय, पृ० ४२ । ३. सिद्धि विनिश्चय टीका ( भाग-१), पृ० ४२ । ४. जैन न्याय, पृ० ४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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