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________________ प्रस्तावना प्रभाचन्द्र आचार्य प्रभाचन्द्र का काल ९५० ई० से १०२० ई० के मध्य माना जाता है । वे एक बहुश्रुत विद्वान् थे। सभी दर्शनों के प्रायः सभी मौलिक ग्रन्थों का उन्होंने अभ्यास किया था। इतर दर्शनों का पूर्वपक्ष स्थापित करते समय वे तत्तत् दर्शनों का हार्द स्पष्ट करते हैं। इनके द्वारा लिखित चार ग्रन्थ माने जाते हैं-१. न्यायकुमुदचन्द्र २. प्रमेयकमलमार्तण्ड ४. तत्त्वार्थवृत्ति और ४. शाकटायन न्यास । प्रमेयकमलमार्तण्ड माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख का विस्तृत भाष्य है । अकलङ्कदेव के लघीयस्त्रय तथा उसकी विवृति के व्याख्यान ग्रन्थ का नाम न्यायकुमुदचन्द्र है। उन्होंने अपने ग्रन्थों में जिन ग्रन्थों से उद्धरण दिए हैं, उनमें से कुछ की तालिका इस प्रकार है-१. न्यायभाष्य, न्यायवातिक, न्याय मञ्जरी, वैशेषिक सूत्र, प्रशस्तपाद भाष्य, पातञ्जलमहाभाष्य, योगसूत्र, व्यासभाष्य, सांख्य कारिका, शाबर भाष्य, ब्रह्म विन्दूपनिषत्, छान्दोग्योपनिषद्, बृहदारण्यक, अभिधर्मकोश, न्यायविन्दु, प्रमाणवार्तिक, माध्यमिकवृत्ति आदि । उनको तत्त्वार्थवत्ति पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि नामक टीका की लघुवृत्ति है। अन्तिम ग्रन्थ शाकटायन न्यास के प्रभाचन्द्रकृत होने में अभी तक सर्वसम्मत निर्णय नहीं हो पाया है। प्रभाचन्द्र ने अपने ग्रन्थों में विद्यानन्द और अनन्तवीर्य का स्मरण किया है और यह भी लिखा है कि अनन्तवीर्य की उक्तियों की सहायता से वे अकलङ्क के प्रकरणों को समझने में समर्थ हुए। उत्तरकालीन ग्रन्यकारों में जो जैन ग्रन्थकार प्रभाचन्द्र की शैली से प्रभावित हुए तथा जिन्होंने प्रभाचन्द्र के लेखों का अनुसरण किया, उनमें सन्मतितर्क टीका के रचयिता अभयदेवसूरि, स्याद्वाद रत्नाकर के रचयिता वादिदेवसूरि । लघु अनन्तवीर्य, हेमचन्द्र, मल्लिषेण तथा उपाध्याय यशोविजय भी प्रभाचन्द्र से प्रभावित हैं । वादिराज ये प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र के रचयिता प्रभाचन्द्र के समकालीन और अकलङ्कदेव के ग्रन्थों के व्याख्याता हैं । चालुक्यनरेश जयसिंह की राज्यसभा में इनका बड़ा सम्मान था । इनका काल १०१० से १०६५ ई० माना जाता है। इनके द्वारा निम्नलिखित ग्रन्थ प्रणीत हुए-१. पार्श्वनाथ चरित २. यशोधरचरित ३. एकीभावस्तोत्र ४. न्यायविनिश्चय विवरण ५. प्रमाण निर्णय । इनमें से अन्तिम दो दार्शनिक कृतियां हैं। न्यायविनिश्चयविवरण अकलङ्कदेव के न्यायविनिश्चय का बीस हजार श्लोक प्रमाण भाष्य है । १. न्यायकुमुदचन्द्र ( प्र० भाग), प्रस्तावना, पृ० १२३ । २. वही, पृ० ११-१२ । प्र० २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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