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________________ १६ प्रमेयरत्नमालायां पादन, धर्मी की सिद्धि के प्रकार, पक्ष प्रयोग की आवश्यकता, अनुमान के दो अङ्ग, उदाहरण , उपनय और निगमन को अनुमान का अङ्ग मानने में दोषो. द्भावन, वीतराग कथा में उदाहरणादि को अनुमान का अङ्ग मानने पर सहमति, दृष्टान्त के भेद, उपनय और निगमन की परिभाषा, स्वार्थानुमान और परार्थानुमान, हेतु के दो भेद उपलब्धि और अनुपलब्धि, उपलब्धि के भेद अविरुद्धोपलब्धि तथा विरुद्धोपलब्धि, अनुपलब्धि के भेद अविरुद्धानुपलब्धि और विरुद्धानुपलब्धि एवं अविरुद्धोपलब्धि के व्याप्य, कार्य, कारण , पूर्वचर, उत्तरचर और सहचर, विरुद्धोपलब्धि के भी अविरुद्धोपलब्धि के समान विरुद्धव्याप्य, विरुद्ध कार्य, विरुद्ध कारण , विरुद्ध पूर्वचर, विरुद्ध उत्तरचर एवं विरुद्ध सहचर, अनुपलब्धि के प्रथम भेद, अविरुद्धानुपलब्धि के अविरुद्ध स्वभावानुपलब्धि, व्यापकानुपलब्धि, कार्यानुपलब्धि, कारणानुपलब्धि, पूर्वचरानुपलब्धि, उत्तरचरानुपलब्धि तथा सहचरानुपलब्धि, विरुद्धानुपलब्धि के विरुद्ध कार्यानुपलब्धि, विरुद्धकारणानुपलब्धि और विरुद्धस्वभावानुपलब्धि भेद, बौद्धों के प्रति कारण हेतु का समर्थन, आगम प्रमाण का लक्षण तथा शब्दादिक के वस्तु का ज्ञान कराने की कारणता का वर्णन है। चतुर्थ समुद्देदा में ९ सूत्र हैं । इसमें कहा गया है कि सामान्य-विशेषात्मक पदार्थ प्रमाण का विषय है। अनेकान्तात्मक वस्तु के समर्थन के लिए यहाँ दो हेतु कहे गये हैं--वस्तु सामान्य विशेषादि अनेक धर्म वाली है; क्योंकि वह अनुवृत्त प्रत्यय और व्यावृत्त प्रत्यय की विषय है तथा पूर्व आकार का परिहार, उत्तर आकार की प्राप्ति और स्थिति लक्षण परिणाम के साथ उसमें अर्थक्रिया पायी जाती है । सामान्य के दो भेद है--तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वतासामान्य । पर्याय और व्यतिरेक के भेद से विशेष दो प्रकार का है। . पञ्चम समद्देश में ३ सूत्र हैं। इसमें कहा गया है कि अज्ञान की निवृत्ति, हान, उपादान और उपेक्षा ये प्रमाण के फल हैं। वह फल प्रमाण से कथञ्चित् अभिन्न है और कथञ्चित् भिन्न है। प्रमाण से जानने वाले का ही अज्ञान निवृत्त होता है । वही हेय वस्तु का त्याग करता है, इष्ट वस्तु का ग्रहण करता है और उपेक्षणीय वस्तु की उपेक्षा करता है। षष्ठ समुदेश में ७४ सूत्र हैं। इसमें प्रमाणाभासों का विवेचन है । स्वरूपाभास, प्रत्यक्षाभास, परोक्षाभास, स्मरणाभास, प्रत्यभिज्ञानाभास, तर्काभास, अनुमानाभास, पक्षाभास, हेत्वाभास, हेत्वाभास के भेद तथा उनके उदाहरण, दृष्टान्ताभास और उसके भेद, बालप्रयोगाभास, आगमाभास, संख्याभास, विषयाभास तथा फलाभास का वर्णन कर वस्तु तत्त्व की सिद्धि के सम्भव अन्य ( नय, निक्षेपादि ) को विचारणीय कहा गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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