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________________ २०६ प्रमेयरत्नमालायां अपरमसिद्धभेदमाह सांख्यम्प्रति परिणामी शब्दः कृतकत्वात् ।। २७ ।। अस्यासिद्धतायां कारणमाह तेनाज्ञातत्वात् ॥ २८ ॥ तेन सांख्येनाज्ञातत्वात् । तन्मते ह्याविर्भावतिरोभावावेव प्रसिद्धौ, नोत्पत्त्यादिरिति । अस्याप्यनिश्चयादसिद्धत्वमित्यर्थः । विरुद्धं हेत्वाभासमुपदर्शयन्नाह विपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धोऽपरिणामी शब्दः कृतकत्वात् ॥ २९ ॥ कृतकत्वं ह्यपरिणामविरोधिना परिणामेन व्याप्तमिति । अनकान्तिकं हेत्वाभासमाह विपक्षेऽप्यविरुद्ध वृत्तिरनैकान्तिकः ।।३० ॥ में भी वाष्पादिपने के कारण सन्देह करता है, क्योंकि निश्चय करना सम्भव नहीं है। असिद्ध हेत्वाभास के और भी भेद कहते हैं सूत्रार्थ-सांख्य के प्रति कहना कि शब्द परिणामी है; क्योंकि वह कृतक है ।। २७॥ इस हेतु की असिद्धता में कारण कहते हैंसत्रार्थ- क्योंकि उसने ( कृतकपना ) जाना ही नहीं है ॥ २८ ॥ उस सांख्य ने जाना नहीं है। सांख्य मत में आविर्भाव (प्रकटपना) और तिरोभाव ( आच्छादनपना ) ही प्रसिद्ध है, उत्पत्ति आदि प्रसिद्ध नहीं हैं। किसी पदार्थ के कृतक होने का उसके यहाँ निश्चय न होने से असिद्धपना है। विरुद्ध हेत्वाभास को बतलाते हुए कहते हैं सत्रार्थ-साध्य से विपरीत पदार्थ के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित हो, उसे विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं। जैसे शब्द अपरिणामी है; क्योंकि वह कृतक है ।। २९ ।। इस अनुमान में कृतकत्व हेतु अपरिणाम के विरोधी परिणाम के साथ व्याप्त है। अनैकान्तिक हेत्वाभास को कहते हैं सूत्रार्थ-जिसका विपक्ष में भी रहना अविरुद्ध है, वह अनैकान्तिक हेत्वाभास है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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