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प्रमेय रत्नमालायां
तेऽपि न प्रातीतिकवादिनः ; विरोधस्य प्रतीयमानयोरसम्भवात् । अनुपलम्भसाध्यो हि विरोधः, तत्रोपलभ्यमानयोः को विरोधः । यच्च शीतोष्णस्पर्शयोर्वेति दृष्टान्ततयोक्तम्, तच्च धूपदहनाद्य कन्वयविनः शोतोष्णस्पर्शस्वभावस्यो - पलब्धेरयुक्तमेव; एकस्य चलाचलरक्तारक्तावृत्तानावृत्ताविविरुद्धधर्माणां युगपदुपलब्धेश्च प्रकृतयोरपि न विरोध इति । एतेन वैयधिकरण्यमप्यपास्तम्; तयोरेकाधिकरणत्वेन प्रतीतेः । अत्रापि प्रागुक्तनिदर्शनान्येव बोद्धव्यानि । यच्चानवस्थानं दूषणं तदपि स्याद्वादिमतानभिज्ञैरेवापादितम् । तत्मतं हि सामान्यविशेषात्मके वस्तुनि सामान्यशिशेषावेव भेदः; भेदध्वनिना तयोरेवाभिधानात् द्रव्यरूपेणाभेद इति द्रव्यमेवाभेदः; एकानेकात्मकत्वाद्वस्तुनः । यदि वा भेदनयप्राधान्येन वस्तुमानना भी स्वस्थता को प्राप्त नहीं होता है, ऐसा कुछ ( यौगादि) लोगों ने कहा है ।
जैन -उपर्युक्त कथन करने वाले भी यथार्थवादी नहीं हैं; क्योंकि यथार्थ रूप से प्रतीत होने वाले सामान्य विशेष या भेद-अभेद में विरोध का होना असम्भव है । विरोध तो अनुपलम्भसाध्य होता है, उपलम्भमान भेद और अभेद में क्या विरोध है ? जो आपने शीत और उष्ण स्पर्श को दृष्टान्त रूप में कहा है, वह कथन धूप दहन वाले घट आदि एक अवयवी के शीत और उष्ण स्वभाव की उपलब्धि होने के कारण अयुक्त ही है । एक ही वस्तु के चल-अचल, रक्त-अरक्त, आवृत - अनावृत आदि विरोधी धर्मों की एक साथ उपलब्धि होने से अतः प्रकृत सामान्य विशेष और भेदाभेद में विरोध नहीं है। एक ही वस्तु में भेद और अभेद के विरोध का परिहार करने से वैयधिकरण्य का भी निराकरण कर दिया; क्योंकि उन भेद और अभेद एकाधिकरण के रूप में प्रतीति होती है । वैयधिकरण्य के निराकरण के प्रकरण में भी पहले कहे गए आदि दृष्टान्त समझना चाहिए। और जो अनवस्था नामक दोष दिया गया है, वह भी उन लोगों द्वारा दिया गया है जो स्याद्वाद मत से अनभिज्ञ हैं । स्याद्वादियों का मत है कि सामान्य विशेषात्मक वस्तु में सामान्य और विशेष ही भेद है; क्योंकि भेद रूप ध्वनि के द्वारा उन दोनों सामान्य विशेषों का कथन किया जाता है । द्रव्यार्थिक नय की प्रधानता से अभेद है, यथार्थ में द्रव्य ही अभेद है; क्योंकि एकानेकात्मक है - द्रव्यदृष्टि से वस्तु एक रूप है और पर्यायदृष्टि से वस्तु अनेक रूप है, यह भाव है । अथवा भेदनय की प्रधानता से वस्तु के अनन्त धर्म होने से अनवस्था दोष नहीं आता है । इसी को स्पष्ट करते हैं— जो सामान्य है और जो विशेष है, उन दोनों से अनुवृत्त और व्यावृत्त
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