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प्रमेयरत्नमालायां
ननु द्रव्यादीनां प्रमाणोपपन्नत्वे मिग्राहकप्रमाणबाधितो हेतुर्येन हि प्रमाणेन द्रव्यादयो निश्चीयन्ते तेन तत्सत्त्वमपीति । अथ न प्रमाणप्रतिपन्ना द्रव्यादयस्तहि हेतोराश्रयासिद्धिरिति तदयुक्तम्; प्रसङ्गसाधनात् । प्रागभावादौ हि सत्त्वाद् भेदोऽसत्त्वेन व्याप्त उपलभ्यते, ततश्च व्याप्यस्य द्रव्यादावभ्युपगमो व्यापकाभ्युपगमनान्तरीयक इति प्रसङ्गसाधनेऽस्य दोपस्याभावात् ।
एतेन द्रव्यादीनामप्यद्र व्यादित्वं द्रव्यत्वादे दे चिन्तितं बोद्धव्यम् । कथं वा षण्णां पदार्थानां परस्परं भेदे प्रतिनियतस्वरूपव्यवस्था ? द्रव्यस्य हि द्रव्यमिति व्यपदेशस्य द्रव्यत्वाभिसंम्बन्धाद्विधाते ततः पूर्व द्रव्यस्वरूप किञ्चिद्वाच्यम्; येन सह द्रव्यत्वाभिसम्बन्धः स्यात् ? द्रव्यमेव स्वरूपमिति चेन्न; तद्वय पदेशस्य द्रव्यत्वाभिसम्बन्धनिबन्धनतया स्वरूपत्वायोगात् । सत्त्वं निजरूपमिति चेन्न; तस्यापि सत्तासम्बन्धनादेव तद्वयपदेशकरणात् । एवं गुणादिप्वपि वाच्यम् ।
योग-(द्रव्यादि प्रमाण प्राप्त हैं या प्रमाण प्राप्त नहीं है, इस प्रकार दो विकल्पों का आश्रय लेकर दोष उपस्थित करते हैं )। द्रव्यादि यदि प्रमाण से परिगृहीत हैं तो सत्त्व से अत्यन्त भिन्न होने के कारण यह हेतु प्रमाण बाधित है। जिस प्रमाण से द्रव्यादिक निश्चय किये जाते हैं, उसी प्रमाण से उन द्रव्यादिकों का सत्त्व भी निश्चय करना चाहिए। यदि द्रव्यादिक प्रमाण से परिगृहीत नहीं है तो हेतु आश्रयासिद्ध हो जाता है।
जैन--यह कहना अयुक्त है। क्योंकि यहाँ पर हमने प्रसंग साधन किया है। प्रागभाव आदि में सत्त्व से जो भेद है, वह असत्व से व्याप्त पाया जाता है इसलिए सत्व से भेद रूप व्याप्प का द्रव्यादिक में जो अङ्गीकार है, वह व्यापक जो असत्त्व उसमें अंगीकार के साथ अविनाभावी है, इस प्रकार प्रसंग साधन करने पर प्रमाणबाधित आदि दोषों का अभाव है।
इसी कथन से ( पर सामान्य से विशेषों के भिन्न मानने पर उनके असत्त्व समर्थन से ) द्रव्यादिक के भी अद्रव्यत्व आदिपना द्रव्यत्व आदि से भेद मानने पर विचार कर लिये गए जानना चाहिए। द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय इन छह पदार्थों का परस्पर भेद मान लेने पर प्रतिनियत स्वरूप वाली व्यवस्था कैसे होगी? द्रव्य के द्रव्य ऐसा निर्देश द्रव्यत्व के सम्बन्ध से करने पर द्रव्यत्व के सम्बन्ध से पूर्व द्रव्य का क्या स्वरूप था, उसके विषय में कुछ कहना चाहिए, जिसके साथ द्रव्यत्व का
सम्बन्ध हो सके। यदि आप कहें कि द्रव्य का द्रव्य ही स्वरूप है तो यह .. कहना ठीक नहीं है। क्योंकि उसका द्रव्य यह नाम तो सत्ता के सम्बन्ध से
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