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प्रमेय रत्नमालायां
सर्वदा सम्भविनस्तदा कार्यसाङ्कर्यम् | नो चेत् तदुत्पत्तिकारणं वाच्यम् ? तस्मादेव तदुत्पत्ती तत्स्वभावानां सदा सम्भवात्यैव कार्याणां युगपत्प्राप्तिः । सहकारिक्रमापेक्षया तत्स्वभावानां क्रमेण भावान्नोक्त दोष इति चेत्तदपि न साधुसङ्गतम् ; समर्थ - स्य नित्यस्य परापेक्षायोगात् । तः सामर्थ्यकरणे नित्यताहानिः । तस्मादुद्भिन्नमेव सामर्थ्यं तैर्विधीयत इति न नित्यताहानिरिति चेत्तहि नित्यमकिञ्चित्करमेव स्थात्, सहकारिजनितसामर्थ्यस्यैव कार्यकारित्वात् । तत्सम्बन्धात्तस्यापि कार्यकारित्व तत्सम्बन्धस्यैकस्वभावत्वे सामर्थ्यनानात्वाभावान्न कार्यभेदः । अनेकस्वभावत्वेऽक्रमवत्त्वे च कार्यवत्तस्यापि साङ्कर्यमिति सर्वमावर्तत इति चक्रकप्रसङ्गः । तस्मान्न क्रमेण कार्यकारित्वं नित्यस्य । नापि युगपत् ; अशेषकार्याणां युगपदुत्पत्तौ द्वितीयक्षणे कार्याकरणादनर्थक्रियाकारित्वेनावस्तुत्वप्रसङ्गात् । इति नित्यस्य क्रमयोगापद्याभावः
ही कार्य के भेद से मानते हैं तो हमारा प्रश्न है कि वे स्वभाव उस नित्य पदार्थ के सर्वदा सम्भव हैं तो कार्यों की सङ्करता प्राप्त होती है, यदि सर्वदा सम्भव नहीं है तो उन स्वभावों की उत्पत्ति का कारण कहना चाहिए | उस नित्य पदार्थ से ही उन स्वभावों की उत्पत्ति मानने पर उन स्वभावों के सदा सम्भव होने से कार्यों की युगपत् प्राप्ति होती है । यदि कहें कि निमित्त कारणों के क्रम की अपेक्षा नित्य पदार्थों के स्वभाव क्रम से उत्पन्न होने के कारण उक्त दोष नहीं है तो यह भी ठीक तरह से सङ्गत नहीं है; क्योंकि जो नित्य समर्थ है, वह दूसरे की अपेक्षा नहीं कर सकता । सहकारी कारणों के द्वारा नित्य के भी सामर्थ्य करना मानने पर नित्यता की हानि होती है । अत: सहकारियों के द्वारा भिन्न ही सामर्थ्य की जाती है, इस प्रकार नित्यता की हानि नहीं होती है, यदि ऐसा कहें तो नित्य अकिञ्चित्कर ही होता है, क्योंकि सहकारियों से उत्पन्न सामर्थ्य ही कार्यकारी होती है । सहकारी कारणों से उत्पन्न हुई सामर्थ्य के सम्बन्ध से नित्य पदार्थ के भी कार्यकारी मानने पर उस सम्बन्ध का एक स्वभाव मानने पर सामर्थ्य के नानापने के अभाव होने से कार्यभेद नहीं होगा । सामर्थ्य के सम्बन्ध को अनेक स्वभाव वाला मानने पर अक्रम रूप से सम्बद्ध होने से घड़े आदि कार्यों के समान उस सामर्थ्य के भी सङ्करपना प्राप्त होगा । इस प्रकार समस्त दोषों के आवर्तन से चक्रक दोष हो जायगा । अतः नित्य पदार्थ क्रम से कार्य नहीं करता है ।
नित्य पदार्थ एक साथ भी कार्य नहीं करता है । समस्त कार्यों की एक साथ उत्पत्ति मानने पर द्वितीय क्षण में कार्य के न करने से अर्थक्रियाकारिता का अभाव हो जायगा, वैसी दशा में उसके अवस्तुपने का प्रसंग
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