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चतुर्थः समुद्देशः
१६३ अथवा सत्त्वमेव विपक्षे बाधकप्रमाणबलेन दृष्टान्तनिरपेक्षमशेषस्य वस्तुनः क्षणिकत्वमनुमापयति । तथाहि-सत्त्वमर्थक्रियया व्याप्तम्, अर्थक्रिया च क्रमयोगपद्याभ्याम्; ते च नित्यान्निवर्तमाने स्वव्याप्यामर्थक्रियामादाय निवर्तेते । सापि स्वव्याप्यं सत्त्वमिति नित्यस्य क्रम-योगपद्याभ्यामर्थक्रियाविरोधात् सत्त्वासम्भावनं विपक्षे बाधकप्रमाणमिति । न हि नित्यस्य क्रमेण युगपद्वा सा सम्भवति; नित्यस्यैकनव स्वभावेन पूर्वापरकालभाविकार्यद्वयं कुर्वतः कार्याभेदकत्वात् तस्यैकस्वभावत्वात् तथापि कार्यनानात्वेऽन्यत्र कार्यभेदात्कारणभेदकल्पना विफलव स्यात् । तादृशमेकमेव किञ्चित् कारणं कल्पनीयं येनकस्वभावेन केनैव चराचरमुत्पद्यत इति ।
अथ स्वभावनानात्वमेव तस्य कार्यभेदादिष्यत इति चेत्तहि ते स्वभावास्तस्य
( अब बहिर्व्याप्ति रूप अनुमान से सिद्धि करते हैं )-अथवा सत्त्व हो विपक्ष रूप नित्य में बाधक प्रमाण के बल से ( नित्य पदार्थ नहीं है। क्योंकि उसमें क्रम से या एक साथ अर्थक्रियाकारिता का अभाव है, इस प्रकार बाधक प्रमाण के बल से ) दृष्टान्त के बिना ही समस्त वस्तुओं के क्षणिकपने का अनुमान कराता है। इसको ही स्पष्ट करते हैं-सत्त्व अर्थ क्रिया से व्याप्त है। अर्थक्रिया क्रम तथा यौगपद्य से व्याप्त है। वे क्रम और योगपद्य नित्य पदार्थ से निवृत्ति होते हुए अपने साथ व्याप्त अर्थक्रिया को लेकर निवृत्त होते हैं। वह अर्थक्रिया भी अपने व्याप्य सत्त्व को साथ में लेकर निवृत्त होती है, इस प्रकार नित्य का क्रम और युगपत् अर्थक्रिया से विरोध है, (नित्य पदार्थ नहीं है क्योंकि उसमें क्रम से और युगपत् अीक्रया का अभाव है। जैसे-खरविषाण)। सत्त्व की असम्भावना ( नित्य रूप ) विपक्ष में बाधक प्रमाण है। नित्य पदार्थ के क्रम से और एक साथ अर्थक्रिया संभव नहीं होती है। (एक स्वभाव अथवा अनेक स्वभाव रूप विकल्पद्वय को मन में रखकर क्रम से अर्थक्रिया का निराकरण करते हुए कहते हैं )। नित्य के एक ही स्वभाव से पूर्वापरकालभावो दो पदार्थों को करते हुए, वह कार्य का भेदक नहीं हो सकता; क्योंकि नित्य पदार्थ एक स्वभाव वाला होता है, तथापि कार्यों का नानापन मानने पर अन्य जगह अर्थात् अनित्य पदार्थों में कार्य के भेद से कारण के भेद की कल्पना करना विफल हो जायगी। अतः उस प्रकार के किसी एक कारण की कल्पना करनी योग्य है, जिससे कि एक स्वभाव वाले एक ही पदार्थ से चराचर जगत् उत्पन्न हो जाय।
नैयायिकों का कहना है कि यदि नित्य पदार्थ के स्वभाव का नानापन
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