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________________ १२७ तृतीयः समुदेशः ननु तदतिरिक्त दृष्टान्तादेरपि व्याप्तिप्रतिपत्तावुपयोगित्वात् व्युत्पन्नापेक्षया कथं तदप्रयोग इत्याह हेतुप्रयोगो हि यथा व्याप्तिग्रहणं विधीयते सा च तावनमात्रेण व्युत्पन्नरवधार्यते ॥ ९२ ॥ हि शब्दो यस्मादर्थे । यस्माद्यथा व्याप्तिग्रहणं व्याप्तिग्रहणानतिक्रमेणव हेतुप्रयोगो विधीयते सा च तावन्मात्रेण व्युत्पन्नस्तथोपपत्त्याऽन्यथानुपपत्त्या वाऽवधार्यते दृष्टान्तादिकमन्तरेणवेत्यर्थः । यथा दृष्टान्तादेाप्तिप्रतिपत्तिम्प्रत्यनङ्गत्वं तथा प्राक् प्रपञ्चितमिति नेह पुनः प्रतन्यते । नापि दृष्टान्तादिप्रयोगः साध्यसिद्धयर्थं फलवानित्याह तावता च साध्यसिद्धिः ॥ ९३ ॥ चकार एवकारार्थे । निश्चितविपक्षासम्भवहेतुप्रयोगमात्रेणैव साध्यसिद्धिरित्यर्थः। होने पर हो धूमवाला हो सकता है। अग्नि के अभाव में धूमवाला नहीं हो सकता ॥ ९१॥ शडा-साध्य-साधन के अतिरिक्त दृष्टान्त आदि का प्रयोग भी व्याप्ति के ज्ञान कराने में उपयोगी है, फिर व्युत्पन्न पुरुषों की अपेक्षा से उनका अप्रयोग क्यों ? इसके विषय में ( समाधान ) कहते हैं सूत्रार्थ-जैसे व्याप्ति का ग्रहण हो जाय, उस प्रकार से हेतु का प्रयोग किया जाता है, अतः उतने मात्र से व्युत्पन्न पुरुष व्याप्ति का निश्चय कर लेते हैं ।। ९२ ॥ हि शब्द यस्मात् अर्थ में है। जैसे व्याप्ति का ग्रहण हो जाय इस प्रकार व्याप्ति के ग्रहण का उल्लंघन न करते हुए हेतु का प्रयोग किया जाता है। वह व्याप्ति उतने मात्र से व्युत्पन्नों के द्वारा तथोपपत्ति अथवा अन्यथानुपपत्ति के द्वारा दृष्टान्तादिक के बिना निश्चित की जाती है, यह तात्पर्य है। जिस प्रकार दृष्टान्तादिक व्याप्ति के ज्ञान के प्रति कारण नहीं हैं, उसका कथन 'एतद्वयमेवानुमानाङ्ग' इत्यादि सूत्र की व्याख्या कर चुके हैं, अतः यहाँ पुनः विस्तार नहीं किया जाता है । __दृष्टान्तादि का प्रयोग साध्य को सिद्धि के लिए फलवान् नहीं है, इसके विषय में कहते हैं सूत्रार्थ उतने मात्र से ही साध्य की सिद्धि हो जाती है ॥ ९३ ।। 'च' शब्द एवकार के अर्थ में है। जिसका विपक्ष में रहना निश्चित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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