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________________ १२८ प्रमेयरत्नमालायां तेन पक्षप्रयोगोऽपि सफल इति दर्शयन्नाह तेन पक्षस्तदाधार-सूचनायोक्तः ॥ ९४ ॥ यतस्तथोपपत्त्यन्यथानुपपत्तिप्रयोगमात्रेण व्याप्तिप्रतिपत्तिस्तेन हेतुना पक्षस्तदाधारसूचनाय साध्यव्याप्तसाधनाधारसूचनायोक्तः । ततो यदुक्तं परेण तद्भावहेतुभावौ हि दृष्टान्ते तदवेदिनः । ख्याप्येते विदुषां वाच्यो हेतुरेव हि केवलः ।। २२॥ इति तन्निरस्तम्; व्युत्पन्न प्रति यथोक्तहेतु प्रयोगोऽपि पक्षप्रयोगाभावे साधनस्य नियताधारतानवधारणात् । अथानुमानस्वरूपं प्रतिपाद्येदानी क्रमप्राप्तमागमस्वरूपं निरूपयितुमाह आप्तवचनादि-निबन्धनमर्थज्ञानमागमः ॥ ९५ ॥ रूप से असम्भव है, ऐसे हेतु के प्रयोगमात्र से ही साध्य की सिद्धि हो जाती है, यह अर्थ है। यथोक्त साधन से साध्य की सिद्धि होती है, अतः पक्ष का प्रयोग भी सफल है, इस बात को दिखलाते हुए कहते हैं सूत्रार्थ-साधन से व्याप्त साध्य रूप आधार की सूचना के लिए पक्ष कहा जाता है ।। ९४ ।। चूँकि तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति के प्रयोग मात्र से व्याप्ति की जानकारी हो जाती है, इस कारण उस आधार की सूचना के लिएसाध्य व्याप्त साधन के आधार की सूचना के लिए पक्ष का प्रयोग किया जाता है। अतः बौद्धों ने जो कहा है श्लोकार्थ-जो ( अव्युत्पन्न ) पुरुष साध्य व्याप्त साधन को नहीं जानते हैं, उनके लिए विज्ञजन दृष्टान्त (महानसादि) में साध्य-साधनभाव या पक्ष-हेतुभाव को कहते हैं, किन्तु विद्वानों के लिए केवल एक हेतु ही कहना चाहिए ॥ २२ ॥ उनके इस कथन का निराकरण कर दिया गया है। व्युत्पन्न पुरुष के प्रति यथोक्त हेतु का प्रयोग करने पर भी पक्ष-प्रयोग के अभाव में साधन के निश्चित नियत आधारता का निश्चय नहीं करता है। ____ अब अनुमान के स्वरूप का निरूपण कर इस समय क्रम प्राप्त आगम का स्वरूप निरूपित करने के लिए कहते हैं सूत्रार्थ-आप्त के वचन आदि के निमित्त से होने वाले अर्थज्ञान को आगम कहते हैं ।। ९५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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