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________________ तृतीयः समुद्देशः नास्त्यत्र धूमोsनग्नेः ॥ ७८ ॥ कारणानुपलब्धि माह- पूर्वच रानुपलब्धिमाह - न भविष्यति मुहूर्त्तान्ते शकटं कृत्तिकोदयानुपलब्धेः ॥ ७९ ॥ उत्तरचरानुपलब्धि माह नोदगाद्भरणिमुंहूर्तात्प्राक् तत एव ॥ ८० ॥ तत एव कृत्तिकोदयानुपलब्धेरेवेत्यर्थः । १२३ सहचरानुपलब्धिः प्राप्तकालेत्याह नास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः ॥ ८१ ॥ विरुद्ध कार्याद्यनुपलब्धिविधी सम्भवतीत्याचक्षाणाभेदास्त्रय एवेति तानेव प्रदर्शयितुमाह विरुद्धानुपलब्धिविधी त्रेधा -- विरुद्धकार्यकारणस्त्रभावा-नुपलब्धिभेदात् ॥ ८२ ॥ अनुपहत शक्ति वाला कहा जाता है । यहाँ अप्रतिहत शक्ति वाली अग्नि का अभाव उसके कार्य धूम के नहीं पाए जाने से है । कारणानुपलब्धि के विषय में कहते हैं सूत्रार्थ - यहाँ पर धूम नहीं है; क्योंकि अग्नि नहीं है ॥ ७८ ॥ पूर्वरानुपलब्धि के विषय में कहते हैं सूत्रार्थ --- एक मुहूर्त के पश्चात् रोहिणी का उदय नहीं होगा; क्योंकि कृत्तिका के उदय को अनुपलब्धि है ।। ७९ ।। उत्तरचरानुपलब्धि के विषय में कहते हैं सूत्रार्थ - एक मुहूर्त से पहले भरणी का उदय नहीं हुआ है; क्योंकि उत्तरचरकृत्तिका का उदय नहीं पाया जाता है ॥ ८० ॥ सूत्र में 'तत एव' पद से कृत्तिका के उदय की अनुपलब्धि का अर्थ लिया गया है । अब जिसका समय प्राप्त हुआ है, ऐसी सहचरानुपलब्धि के विषय में कहते हैं सूत्रार्थ - इस समतुला में एक ओर ऊँचापन नहीं है; क्योंकि उन्नाम का अविरोधी सहचर नहीं पाया जाता है ।। ८१ ।। Jain Education International विरुद्ध कार्यानुपलब्धि आदि हेतु विधि में सम्भव हैं और उसके भेद तीन ही हैं, यह प्रदर्शित करने के लिए कहते हैं सूत्रार्थ - विधि के अस्तित्व को सिद्ध करने में विरुद्धानुपलब्धि के For Private & Personal Use Only 2 www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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