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तृतीयः समुद्देशः
१०५ तत्रापि उदाहरणेऽपि तद्विप्रतिपत्तो सामान्यव्याप्तिविप्रतिपत्तावित्यर्थः। शेष व्याख्यातम् ।
तृतीयविकल्पे दूषणमाहनापि व्याप्तिस्मरणार्थ तथाविधहेतुप्रयोगादेव तत्स्मृतेः ॥ ३७॥
गृहीतसम्बन्धस्य हेतुप्रदर्शनेनैव व्याप्तिसिद्धिः । अगृहीतसम्बन्धस्य दृष्टान्तशतेनापि न तत्स्मरणम्; अनुभूतविषयत्वात्स्मरणस्येति भावः ।
तदेवमुदाहरणप्रयोगस्य साध्या प्रति नोपयोगित्वम् ; प्रत्युत संशयहेतुत्वमेवेति दर्शयतितत्परमभिधीयमानं साध्यमिणि साध्यसाधने सन्देहयति ।३८॥ है । और व्याप्ति सामान्य से होती है। उदाहरण में भी व्याप्ति विषयक विवाद होने पर अन्य दृष्टान्त की अपेक्षा अनवस्था दोष होता है। तात्पर्य यह है कि उदाहरण व्यक्ति रूप होता है, उस उदाहरण में स्थित व्याप्ति सामान्य रूप वाली होती है । अन्यत्र प्रदेश में ऐसी व्याप्ति होगी, इस विषय में जो सन्देह होता है, उसके निराकरण के लिए उदाहरण का कथन करना चाहिए । वहाँ पर भी सामान्य व्याप्ति का सद्भाव है। उसके परिहार के पुनः उदाहरण खोजना चाहिए, इस प्रकार अनवस्था दोष होता है ॥३६॥
उस उदाहरण में भी सामान्य व्याप्ति में विवाद होने पर, यह अर्थ होता है। शेष की व्याख्या ही हो चुकी है।
तृतीय विकल्प-व्याप्ति का स्मरण करने के लिए उदाहरण का प्रयोग । आवश्यक है, इस विषय में दूषण कहते हैं
सूत्रार्थ-व्याप्ति का स्मरण करने के लिए भी उदाहरण का प्रयोग आवश्यक नहीं है। क्योंकि साध्य के अविनाभावि हेतु के प्रयोग से हो व्याप्ति का स्मरण हो जाता है ॥ ३७॥
जिसने साध्ध के साथ साधन का सम्बन्ध ग्रहण किया है, ऐसे पुरुष को हेतु के दिखलाने से ही व्याप्ति की सिद्धि हो जायगी। जिसने सम्बन्ध को ग्रहण नहीं किया है ( जो रसोईघर में केवल धुएँ और अग्नि के संबंध को जानता है, परन्तु जहाँ धूम है वहाँ अग्नि है, इस प्रकार जिसके सम्बन्ध -ग्रहण नहीं है ) ऐसे व्यक्ति को सैकड़ों दृष्टांतों से भी व्याप्ति का स्मरण नहीं होगा, क्योंकि स्मरण का विषय अनुभूत विषय है।
अतः इस प्रकार उदाहरण का प्रयोग साध्य के लिए उपयोगी नहीं है, अपितु संशय का ही हेतु है, इस बात को दिखलाते हैं
सूत्रार्थ-केवल उदाहरण का ही प्रयोग किया जाय तो वह साध्य
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