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________________ १०४ प्रमेयरत्नमालायां द्वितीयविकल्पं शोधयन्नाहतदविनाभावनिश्चयार्थ वा विपक्षे बाधकादेव तत्सिद्धेः ॥ ३५॥ तदिति [ अनु- ] वर्तते, नेति च । तेनायमर्थः तदुदाहरणं तेन साध्येनाविनाभावनिश्चयार्थ वा न भवतीति; विपक्षे बाधकादेव तत्सिद्धरविनाभावनिश्चयसिद्धः। किञ्च-व्यक्तिरूपं निदर्शनं तत्कथं साकल्येन व्याप्ति गमयेत् ? व्यक्त्यन्तरेषु व्याप्त्यर्थं पुनरुदाहरणान्तरं मग्यम् । तस्यापि व्यक्तिरूपत्वेन सामस्त्येन व्याप्तेरवधारयितुमशक्यत्वादपरापर-तदन्तरापेक्षायामनवस्था स्यात् । । एतदेवाऽऽहव्यक्तिरूपं च निदर्शनं सामान्येन तु व्याप्तिस्तत्रापि तद्विप्रतिपत्तावनवस्थानं स्याद् दृष्टान्तान्तरापेक्षणात् ॥ ३६ ॥ द्वितीय विकल्प अथवा हेतु का अविनाभाव नियम बतलाने के लिए उदाहरण का प्रयोग आवश्यक है, इसका शोधन करते हुए कहा है सूत्रार्थ-यदि वह उदाहरण साध्य के साथ अविनाभाव के निश्चय के लिए ही हो तो विपक्ष में बाधक प्रमाण से ही अविनाभाव सिद्ध हो जाता है ॥ ३५ ॥ सूत्र में 'तत्' और 'न' इन दो पदों की अनुवृत्ति करना चाहिए। इससे यह अर्थ प्राप्त होता है-वह उदाहरण उस साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध का निश्चय करने के लिए भी कारण नहीं है। क्योंकि विपक्ष ( जलाशयादि में ) बाधक ( तर्क ) से ही उसकी सिद्धि हो जाती है, अतः अविनाभाव की निश्चित सिद्धि होती है। दूसरी बात यह है कि उदाहरण एक व्यक्ति रूप होता है, वह सर्व देश, काल के उपसंहार से व्याप्ति का ज्ञान कैसे करायेगा ? अन्य विशेषों में व्याप्ति के अन्य उदाहरण खोज लेना चाहिए। अन्य उदाहरण भी व्यक्ति रूप होगा । अतः समस्त देश काल के उपसंहार से वह भी व्याप्ति का निश्चय कराने के लिए अशक्य होगा। इस प्रकार अन्य-अन्य उदाहरणों की अपेक्षा करने पर अनवस्था दोष होता है। तात्पर्य यह कि व्याप्ति विषयक सन्देह को दूर करने के लिए यदि उदाहरण अन्वेषण करने योग्य है तो वहाँ भी सामान्य से व्याप्ति विषयक सन्देह को दूर करने के लिए अन्य उदाहरण होना चाहिए, इस प्रकार अनवस्था दोष होगा। इसी बात को कहते हैंसूत्रार्थ-निदर्शन ( विशेष आधार वाला होने से ) विशेष रूप होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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