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________________ १०० प्रमेयरत्नमालायां धर्मिणोऽपि साध्यत्वे को दोष इत्यत्राह - अन्यथा तदघटनात् ॥ २९ ॥ उक्तविपर्ययेऽन्यथाशब्दः । धर्मिणः साध्यत्वे तदघटनात् व्याप्त्यघटनादिति हेतुः । न हि धूमदर्शनात्सर्वत्र पर्वतोऽग्निमानिति व्याप्तिः शक्या कर्तुम्; प्रमाणविरोधात् । ननु अनुमाने पक्षप्रयोगस्यासम्भवात् प्रसिद्धो धर्मीत्यादिवचनमयुक्तम्; तस्य सामर्थ्य लब्धत्वात् । तथापि तद्वचने पुनरुक्तताप्रसङ्गात् । अर्थादापन्नस्यापि पुनर्वचनं पुनरुक्तमित्यभिधानादिति सौगतस्तत्राहसाध्यधर्माधारसन्देहापनोदाय गम्यमानस्यापि पक्षस्य वचनम् ॥३० साध्यमेव धर्मस्तस्याधारस्तत्र सन्देहो महानसादिः पर्वतादिर्वेति । तस्यापनोदो धर्मी के भी साध्य होने पर क्या दोष है, इसके विषय में कहते हैंसूत्रार्थ - अन्यथा व्याप्ति घटित नहीं हो सकती ॥ २९ ॥ विशेष - व्याप्ति में धर्मी के भी साध्य होने पर व्याप्ति बन नहीं सकती है । जहाँ-जहाँ धूम है, वहाँ वहाँ अग्नि वाला पर्वत है, ऐसी व्याप्ति करना सम्भव नहीं है, प्रत्यक्ष से विरोध आता है, अनुमान भी असम्भव होता है । व्याप्ति में साध्यविशिष्ट धर्मी को साध्य बनाने से हेतु के प्रति अन्वय की असिद्धि होती है । सूत्र में अन्यथा शब्द ऊपर कहे गये अर्थ के विपरीत अर्थ में कहा गया है । धर्मी को साध्य बनाने पर व्याप्ति नहीं बनती है, यह हेतु है । धुएँ के देखने से सब जगह पर्वत अग्नि वाला है, इस प्रकार की व्याप्ति करना सम्भव नहीं है; क्योंकि ( साध्य साधन भाव के असम्भव होने से ) प्रमाण से विरोध आता है | बौद्ध — अनुमान में पक्ष प्रयोग के असम्भव होने से धर्मी प्रसिद्ध होता है, यह वचन अयुक्त है, पक्ष तो हेतु के सामर्थ्य से ही जाना जाता हैसाध्य साधन की सामर्थ्य से प्राप्त होता है; सामर्थ्य से जानकारी होने पर भी पक्ष का कथन करने पर पुनरुक्त दोष आता है । अर्थ से प्राप्त होने वाले पदार्थ के पुनः कहने को पुनरुक्त कहते हैं। इस प्रकार कहा गया है । इसके उत्तर में जैनों का कहना है सूत्रार्थ - साध्यधर्म के आधार में उत्पन्न हुए सन्देह को दूर करने के लिए गम्यमान भी पक्ष का प्रयोग किया जाता है ।। ३० ।। साध्य ही धर्म है, उसका आधार ( पक्ष ), उसमें यदि सन्देह हो कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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