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________________ द्वितीयः समुद्देशः वृत्त्यभावात् । नाप्यनकान्तिकम् ; विपक्षे परमाण्वादावप्रवृत्तेः । प्रतिपक्षसिद्धिनिबन्धनस्य साधनान्तरस्याभावान्न प्रकरणसमम् । अथ 'तन्वादिकं बुद्धिमद्धेतुकं न भवति, दृष्टकर्तृकप्रासादादिविलक्षणत्वादाकाशवत्' इत्यस्त्येव प्रतिपक्षसाधनमिति । नेतद्युक्तम्; हेतोरसिद्धत्वात् सन्निवेशविशिष्टत्वेन प्रासादादिसमानजातीयत्वेन तन्वादीनामुपलम्भात् । अथ यादृशः प्रासादादौ सन्निवेशविशेषो दृष्टो न तादृशस्तन्वादीविति चेन्न; सर्वात्मना सदृशस्य कस्यचिदप्यभावात् । सातिशयसन्निवेशो हि सातिशयं कर्तारं गमयति, प्रासादादिवत् । न च दृष्टकर्तृकत्वादृष्टकर्तृकत्वाभ्यां बुद्धिमन्निमित्तेतरत्वसिद्धिः, कृत्रिमर्मणिमुक्ताफलादिभिर्व्यभिचारात् । ईश्वर, आकाश, काल निमित्त कारण हैं, क्योंकि ये अनादि निधन हैं और आदि तथा अन्त से रहित हैं, इत्यादि अनुमान में कार्यत्व असिद्ध नहीं होता है। पृथिवी आदि कार्य हैं; क्योंकि सावयव हैं। जो सावयव होता है, वह कार्य होता है, जैसे-महल आदि । चूंकि यह सावयव है । अतः कार्य है। तनु आदि में कार्यत्व हेतु विरुद्ध भी नहीं है, क्योंकि बुद्धिमन्निमित्तकत्व रूप साध्य विपक्ष ( अबुद्धिमन्निमित्तक नित्य परमाणु आदि में ) नहीं रहता है। विपक्ष परमाणु आदि में प्रवृत्त नहीं होने से यह हेतु अनैकान्तिक भी नहीं है। प्रतिपक्ष की सिद्धि जिसमें कारण है, ऐसे अन्य साधन के अभाव के कारण यहाँ प्रकरणसम भी नहीं है। शङ्का-शरीर आदि बुद्धिमनिमित्तक नहीं होते हैं; क्योंकि जिनका कर्ता दिखाई देता है ऐसे प्रासादादि से वे विलक्षण हैं, जैसे-आकाश । इस प्रकार यहाँ प्रतिपक्ष का साधन है ही। समाधान-यह ठीक नहीं है; क्योंकि यहाँ हेतु असिद्ध है; क्योंकि रचना विशेष के कारण प्रासादादि के समानजातीय शरीरादि की उपलब्धि होती है। शङ्का-प्रासादादि की जैसी रचनाविशेष दिखाई देती है, वैसी तनुआदि की नहीं होती है। ____समाधान-ऐसा नहीं है। जो सब प्रकार से दूसरे के समान हो, ऐसी किसी भी वस्तु का अभाव है। सातिशय रचना सातिशय कर्ता का ज्ञान कराती है। जैसे-प्रासादादि। जिनका कर्ता दिखाई देता है और जिनका कर्ता दिखाई नहीं देता है, इन दोनों में बुद्धिमन्निमित्त और अबुद्धिमनिमित्त की सिद्धि नहीं होती है, अन्यथा कृत्रिम मणि मुक्ताफलादि १. रचनाविशेष । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001131
Book TitlePrameyratnamala
Original Sutra AuthorShrimallaghu Anantvirya
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages280
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size17 MB
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