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________________ मी अभिलेख (९) महुडी का भोजदेव का ताम्रपत्र अभिलेख (सं. १०७४ = १०१८ ई.) प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है जो मध्यप्रदेश में सिहोर जिले की आष्टा तहसील में महुडी ग्राम में रतनसिंह व उदयसिंह के पास परम्परागत संपत्ति के नाते रखे हैं । इसका प्रथम उल्लेख मेरे विद्यार्थी वी. एस. वाकणकर ने इन्दौर से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका वीणा, धार स्मृति अंक, फरवरी १९५७, पृष्ठ २० व आगे में किया। बाद में डी. सी. सरकार ने एपि. इं., भाग ३३, १९५९-६० पृष्ठ २१५ व आगे में इसका सम्पादन किया । ४३ ताम्रपत्रों का आकार ३५x२३ सें. मी. है। इनमें लेख भीतर की ओर खुदा है। इनमें दो छेद हैं जिनमें कड़ियां पड़ी हैं । ताम्रपत्रों के किनारे मोटे हैं व भीतर की ओर मुड़े हैं । अभिलेख कुल २९ पंक्तियों का है। प्रथम ताम्रपत्र पर १५ व दूसरे पर १४ पंक्तियां हैं। अक्षरों की बनावट सुन्दर है। दूसरे ताम्रपत्र की अंतिम आठ पंक्तियों के अक्षर कुछ छोटे हैं। इन पंक्तियों के बराबर बाईं ओर राजचिन्ह है जिसमें विरासन में बैठा गरुड है । उसके बायें हाथ में कुम्भ व दाहिने में सर्प है। उसका शरीर मानव का एवं मुखाकृति पक्षी की है । अक्षरों की बनावट ११ वीं सदी की नागरी है । लिखावट सुन्दर है व अक्षर भलीभांति उत्कीर्ण हैं। भाषा संस्कृत है व गद्य-पद्यमय है । इसमें कुल ९ श्लोक हैं। शेष अभिलेख गद्य में है । व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व श के स्थान पर सका सामान्य रूप से प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार म् के स्थान पर अनुस्वार व अनुस्वार के स्थान पर म् का प्रयोग है । र के बाद का व्यंजन दोहरा कर दिया गया है। कुछ अक्षर ही गलत हैं जिन को पाठ में ठीक कर दिया गया है। यह कहना कठिन है कि इन त्रुटियों के लिये लेखक एवं उत्कीर्णकर्ता में से कौन उत्तरदायी है । तिथि पंक्ति ७-८ में शब्दों में तथा पंक्ति २८ में अंकों में लिखी है । प्रथम तिथि भूदान की घोषणा कर प्रदान करने की है। यह संवत् एक हजार चौहत्तरवें वर्ष में श्रावण सुदी पूर्णिमा गुरुवार चन्द्रग्रहण लिखी है, जो ३० जुलाई १०१८ ई. के बराबर बैठती है । परन्तु उस दिन बुधवार था गुरुवार नहीं तथा कोई चन्द्रग्रहण भी नहीं था । ताम्रपत्र लिखवा कर दानप्राप्तकर्त्ता ब्राह्मण को देने की तिथि अंकों में संवत् १०७४ अश्विन सुदि ५ थी । यह बुधवार १७ सितम्बर १०१८ ईस्वी के बराबर है । प्रमुख ध्येय पंक्ति ७ व आगे में वर्णित है। इसके अनुसार श्री भोजदेव ने उपरोक्त तिथि को धारा नगरी में निवास करते हुए चन्द्रग्रहण पर्व पर स्नान कर भगवान भवानिपति की विधिपूर्वक अर्चना कर भूमिगृह पश्चिम द्विपंचाशतक के अन्तर्गत दुर्गाई ग्राम दान में दिया था । दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मण गौड देश के अन्तर्गत श्रवणभद्र स्थान से देशान्तरगमन करके मालव - राज्य में आया वत्स्य गोत्री पंचप्रवरी वाजनसेय शाखा का अध्ययनकर्ता भट्ट गोकर्ण का पौत्र भट्ट श्रीपति का पुत्र पंडित मार्कण्ड शर्मा था ( पं. १३-१५ ) । Jain Education International पंक्ति २-५ में दानकर्ता नरेश की वंशावली है जिसके अनुसार सर्वश्री सोयकदेव, वाक्पतिराजदेव, सिंधुराजदेव व भोजदेव के नाम हैं । इनके नामों के साथ पूर्ण राजकीय उपाधियां For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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