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________________ परमार अभिलेख १३. ता भूमी (मि)-पारशि (शिव) का ल(लि)ख्यत्ता (न्ते) राजाध्य[क्ष]-विदितः व [ल्लो]टकीया वा (ब्राह्मणाः तात: नाट: १४. ता (त)था पाहीयः वा (ब्रा) ह्मण-गोवर्द्धनः केल (ला)दित्यः दन्तिवर्म-सुत-ठक्कुर-राणकः पट्ट१५. किल-झुम्वा (बा) क-गोग्गकादिभि परिशकत्वा (आदिनाम् पाश्विकत्वे) भूमि दत्रिता (दत्तेति) . (पृष्ठभाग) १६. साक्षि]णोः (नो) ली (लि) ख्यन्ते त्रत्रा (यथा) संकशकानामधिपति-ठक्कुर-केशवादित्यः १७. तथा ताम्पालीक: मेहर-वल्लभराजः कपण्डि (ष्टि)-सुत-श्रेस्ठि (ष्ठि) जाउडि: १८. कपष्डि (ष्ठि)-शु(सु)त-भभ तथा वेइवशुः गु(गू) ढ़यतिः सोङघमा-(संगमः) कोल्ला-शु (सु)त ठक्कु१९. र-चन्द्रिकादि समस्तजन-प्रत्यक्ष शासनं समुकृतं (कीर्ण) लिखितं २०. चे (चै)तत लिख्यक (लेखक)-अन्तक-शु (सु)त-च्छडकेन [1] इति श्री चच्छ (वत्स) राजस्य । २१. मंगलं महाश्रीः॥ पवन अनुवाद (अग्रभाग) . १. सिद्धि हो। संवत्सर एक हजार सड़सठ ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ...२. संवत् १०६७ ज्येष्ठ सुदि १ रविवार के दिन आज यहां समस्त राजावली (ध्यान करते हुए) ३. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री सोयकदेव के पादानुध्यायो ४. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री वाक्पतिराजदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक ५. महाराजाधिराज परमेश्वर श्री सिंधुराज देव के पादानुध्यायी परमभट्टारक ६. महाराजाधिराज परमेश्वर श्री भोजदेव के राज्य में श्री मोहडवासक अर्धाष्टम मण्डल में ७. भोत्कार (भोक्तृ?) महाराजपुत्र श्री वत्सराज यहां ही वल्लोटकवासी चतुर्जातक शास्त्र के अध्ययन ८. में संपन्न श्रेष्ट ब्राह्मण देई (देदाक) को शयनपाट ग्राम में दी गई दो हल ९. भूमि शासन द्वारा दी जाती है। इस प्रकार शयनपाट ग्राम में कोद्रव (अनाज) तिल मूंग १०. चावल गेहुं आदि के खेत व चार घाटों से संयुक्त तथा ग्राम के मध्य में घर खलिहान ११. व धान्य समेत इस ब्राह्मण को हर्षपुर से निकला हुआ उपमन्यु गोत्री १२. गोपादित्य के पुत्र चतुर्जातक ब्राह्मण देहाक को धर्म हेतु शासन द्वारा दी गई १३. भूमि के पड़ोस में लिखे हुए राज्याध्यक्ष को विदित है, वल्लोटकीय ब्राह्मण तात नाट १४. तथा पाहीय ब्राह्मण गोवर्धन केलादित्य दन्तिवर्म के पुत्र ठकुर राणक १५. पटेल झम्बाक गोग्गक आदि से शंका (निश्चय) करके भूमि दी गई है। (पृष्ठभाग) १६. (इसके) साक्षी लिखे जाते हैं जैसे संकशक का अधिपति ठकुर केशवादित्य १७. तथा ताम्पालीक मेहर वल्लभराज कपिष्टपुत्र श्रेष्ठिन जाउडि १८. कपिष्ट पुत्र भभ तथा वेइवशु गूढ़यति संगम कील्ला पुत्र ठकुर १९. चन्द्रिका आदि सभी व्यक्तियों के सामने उत्कीर्ण कर लिखा गया। . २०. और इसका लेखक अन्तक पुत्र छडक है। श्री चच्छ (वत्स) राज के (हस्ताक्षर ? ) २१. मंगलं महाश्रीः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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