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मोडासा अभिलेख
में हैं जो राजस्थान के चौथिया के समान है। परन्तु जातक का भाव फलित ज्योतिष भी होता है। यदि ऐसा है तो कहना चाहिये कि "चार ज्योतिषियों के मंडल का सदस्य"।।
पंक्ति १३-१५ में दान में दी गई भूमि के पाश्विकों के नाम हैं। यहां पाश्विकों से तात्पर्य शयनपाटक ग्राम में दान दी गई दो हल भूमि के पड़ोस में स्थित भूस्वामियों के नामों से है। पाश्विकों की सूचि में निम्नलिखित व्यक्तियों के नाम राज्याध्यक्ष को विदित हैं-ब्राह्मण ताट, नाट व पाहीय जो वल्लोटकीय थे, ब्राह्मण गोवर्द्धन, केलादित्य, ठकुर राणक जो दन्तिवर्म का पुत्र था, पटेल झम्बाक व गोग्गक ।
इसी प्रकार पंक्ति १६-१९ में साक्षियों की सूची है जिनके सामने अभिलेख लिखा गया था। इनमें संकशक का अधिपति ठकुर केशवादिय तथा ताम्पालीक, मेहर अर्थात ग्राम मखिया वल्लभराज, श्रेष्टिन जाउडि तथा भभ जो दोनों ही कपिष्ट के पुत्र थे, वेइवश, गढयति, संगम और कील्ला का पुत्र ठकुर चंद्रिका। यहां संकशक का ठीक अर्थ लगाना कठिन है। यह शब्द संकर्षक अर्थात कृषक नहीं हो सकता, क्योंकि 'कृषकों का अधिपति' का अनुमान लगाना ही कठिन है। अतएव यह किसी कबीले अथवा समदाय का नाम हो सकता है।
अभिलेख अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है। यह महान परमार नरेश भोज देव के शासनकाल से संबंधित सर्वप्रथम प्राप्त अभिलेख है। इसके माध्यम से भोज का साम्राज्य साबरकांठाअहमदाबाद तक विस्तृत होना प्रमाणित होता है जो गुजरात के चौलुक्यों अथवा सोलंकी समकालीन नरेशों की राजधानी अन्हिलपाटन से बहुत दूर नहीं था।
जैनाचार्य मेरुतुंग (प्रबन्ध चिन्तामणि, टानी का अंग्रेजी अनुवाद पृष्ठ ३१ व आगे) व कुछ अन्य प्रबन्धकारों ने एक किंवदन्ति का उल्लेख किया है कि परमार नरेश वाक्पति मुंज
उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई सिंधराज न होकर सिन्धराज का पत्र भोज देव था। परन्तु पद्मगुप्त रचित नवसाहसांक चरित (सर्ग ११, श्लोक, ९८) व परमार राजवंशीय अभिलेखों के साक्ष्य से उस किंवदन्ति का खण्डन होता है। प्रस्तत ताम्रपत्र, जो यद्यपि एक अधीनस्थ सामन्त द्वारा निजी रूप में दानरूप प्रदान किये गये थे. में भी सिंधराज के लिये पूर्ण राजकीय उपाधियां परमभटारक महाराजाधिराज परमेश्वर प्रयक्त की गई हैं और उसको वाक्पतिराजदेव द्वितीय का उत्तराधिकारी व भोजदेव का पूर्वज निरूपित किया गया है। आचार्य मेरुतुंग के अनसार (प्रबन्ध चिन्तामणि, पष्ठ ३३-३६) वाक्पति मंज चालक्यों के विरुद्ध अपने सातवें व अंतिम आक्रमण में चालक्य नरेश तैलप द्वितीय द्वारा हरा कर बन्दी बना लिया गया एवं बाद में उसकी हत्या कर दी गई। तैलप द्वितीय के पुत्र महामंडलेश्वर आहवमल्ल सत्याश्रय के धारवार जिले में चिक्केरूर से प्राप्त अभिलेख, जिसकी तिथि शक संवत् ९१७ फाल्गुन सुदि १५ शनिवार तदनुसार १८ फरवरी, ९९५ ईस्वी है, से ज्ञात होता है कि इस समय वह उत्पल अर्थात वाक्पतिमुंज से युद्ध करने हेतु उत्तर की ओर प्रस्थान कर रहा था। (एपि. इं. भाग ३३, पृष्ठ १३१ व आगे)। आहवमल्ल सत्याश्रय इस समय धारवार के भूप्रदेश में अपने पिता तैलप द्वितीय का प्रान्तपति था। इससे ज्ञात होता है कि परमार नरेश वाक्पतिमुंज फरवरी ९९५ ई. के बाद हो किसी समय परास्त कर बन्दी बनाया गया था। इस अभिलेख के समय परमार नरेश निश्चित रूप से चालुक्य साम्राज्य की ओर अग्रसर हो रहा था। अतः चालुक्य युवराज का अपने पिता के साम्राज्य के दक्षिणी भाग से उत्तरी भाग को ओर अभिगमन वास्तव में परमार आक्रमण से सुरक्षा हेतु चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय का अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि की योजना का ही एक अंग था। फलतः परमार नरेश परास्त कर बन्दी बना लिया गया और ९९७ ईस्वी में
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