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________________ ४० परमार अभिलेख तैलप द्वितीय की मृत्यु से पूर्व उसका वध कर दिया गया। नवसाहसांकचरित् ( पर्व ११, श्लोक ९८) के साक्ष से ज्ञात होता है कि ( ९९५ ईस्यों के प्रारम्भ में) वाक्पतिराज मुंज के चालुक्य राज्य पर अंतिम आक्रमण के प्रयाण करने के समय मालव राज्यसिंहासन पर उसका छोटा भाई सिंधुराज उसके प्रतिनिधि के रूप में आरूढ़ हो गया था। बाद में वाक्पतिराज की जीवनलीला के अन्त हो जाने का समाचार पा कर सिंधुराज अपने भाई का उत्तराधिकारी बन गया और उसने पूर्ण राजकीय उपाधियां धारण कर स्वतंत्ररूप से शासन करना प्रारम्भ कर दिया । इस प्रकार सिंधुराज का शासन ९९५ ईस्वी के प्रारम्भ में निर्धारित करना ही युक्तियुक्त है । सिंधुराज के शासनकाल की अवधि व इसके पुत्र भोजदेव के सिंहासनारूढ़ होने की तिथि निर्धारित करना निश्चित प्रमाणों के अभाव में अत्यन्त कठिन है । कुछ विद्वानों ने सुझाव दिया है कि भोज देव का राज्यारोहण १००५ ईस्वी में हुआ था, परन्तु कतिपय विद्वान उसका राज्यारोहण १०१० ई. में निश्चित करते हैं (देखिये वूलर द्वारा संपादित पाईया लच्छी, प्रस्तावना पृष्ठ ९; एपि. इं. भाग १, पृष्ठ २३२-३३ ) | परन्तु मेरुतुंग कृत प्रबंधचिन्तामणि व बल्लाल रचित भोजप्रबंध में एक निश्चित किंवदन्ति का उल्लेख है जिसमें भोजदेव के शासनकाल की अवधि दी हुई है। डी. सी. सरकार के मतानुसार कोई कारण दृष्टिगोचर नहीं है जिससे इसकी सत्यता पर विश्वास क्यों न किया जावे। इसके अनुसार भोजदेव ने ५५ वर्ष ७ मास ३ दिन शासन किया था :-- पञ्चाशत्पञ्चवर्षाणि सप्तमासं दिनत्रयम् । भोजदेवेन भोक्तव्यः सगौडोदक्षिणापथः ।। ( भोजप्रबंध संपादन वासुदेव पणशीकर पृष्ठ २; प्रबंधचिन्तामणि संपादन दुर्गाशंकर केवलराम शास्त्री पृष्ठ ३२ ) भोज के उत्तराधिकारी जयसिंह की प्रारम्भिक ज्ञात तिथि इसके मान्धाता ताम्रपत्र ( अभिलेख क्र. १९ एपि. ई. भाग २, पृष्ठ ४६, भांडारकर सूची क्र. १३२ - श्री वूलर अपर्याप्त साधनों के आधार पर भोज की मृत्यु १०६२ ईस्वी के पश्चात निश्चित की थी) जो संवत् १११२ आषाढ़ वदी १३ तदानुसार रविवार १३ जून १०५६ ईस्वी में निस्सृत किया गया था, से ज्ञात होती है । भोजदेव की राजसभा के एक कवि दशवल ने अपने ग्रन्थ 'चिन्तामणि सार्णिका' की रचना शक संवत् ९७७ तदनुसार १०५५-५६ ईस्वी में की थी ( जर्नल आफ ओरियंटल रिसर्च, १९५२, भाग १९, खण्ड २, सप्लीमेंट) । इसके आधार पर भोज के शासन की अंतिम तिथि ज्ञात हो सकती है । इस प्रकार निष्कर्षरूप से कहा जा सकता है कि भोजदेव ने प्रायः १००० ई. से १०५५ ई. तक राज्य किया था । अतएव उसके पिता सिंधुराज ने ९९५ ई. से १००० ई. तक अर्थात प्रायः पांच वर्ष तक राज्य किया होगा । नवसाहसांकचरित् में वर्णित सिंधुराज की विजयों के बारे में मनगढ़न्त कथाओं के आधार पर इसको अधिक लम्बे काल का शासन निर्धारित करने में संकोच होना स्वाभाविक है । (एपि. इं., भाग १, पृष्ठ २३२-३३; डी. सी. गांगुली, परमार राजवंश का इतिहास, पृष्ठ ५८-५९ । वैसे भी नवसाहसांक चरित का रचनाकाल अनिश्चित है, यद्यपि यह १००५ ईस्वी में निर्धारित करने का सुझाव भी है - सम्पादन पंडित वामन शास्त्री इस्लामपुरकर, १८९५; इं. ऐं., भाग ३६, पृष्ठ १६३ ) । प्राप्त अभिलेखों में प्रस्तुत अभिलेख ही भोज के शासनकाल का सर्वप्रथम है । अतएव भोजदेव के कुल शासन की अवधि का प्रश्न भविष्य में इससे पूर्व तिथि के अभिलेख अथवा अन्य साक्ष्य तक अनिर्णीत ही मानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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