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________________ गाऊनरी अभिलेख (७) गाऊनरी का वाक्पतिराजदेव द्वितीय का ताम्रप्रत्र ( संवत् १०४३ = ९८६ ई.) प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है । ये ताम्रपत्र पूर्ववर्णित ताम्रपत्रों के साथ प्राप्त हुए थे । इनका उल्लेख एम. बी. गर्दे एवं सम्पादन के. एन. दीक्षित द्वारा उन ही ताम्रपत्रों के साथ किया गया था । ३३ ताम्रपत्रों का आकार ३२x२५ सें. मी. व ३३x२५.३ सें. मी. है । इनमें लेख भीतर की ओर खुदा है । दोनों में दो-दो छेद बने हैं जिन में कड़ियां पड़ी हैं । इनके किनारे मोट हैं व भीतर की ओर मुड़े हैं । दोनों का वजन ३.१४० किलोग्राम है । I अभिलेख २९ पंक्तियों का है । प्रथम ताम्रपत्र पर १६ व दूसरे पर १३ पंक्तियां अक्षरों की बनावट सुन्दर है । ताम्रपत्रों पर नरेश के हस्ताक्षर नहीं हैं । न ही गरूड़ का राजचिन्ह है । फिर भी यह माना जा सकता है कि यह राजकीय अभिलेख है । ये ताम्रपत्र पूर्ववणित ताम्रपत्रों के साथ जुड़े हुए प्राप्त हुए थे जो पूर्णतः राजकीय अभिलेख है । अतः भूल से अथवा जानकर इन पर हस्ताक्षर व राजचिन्ह अंकित नहीं किये गये । भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है । इसमें कुल नौ श्लोक हैं, शेष गद्य में है । व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से इसमें कुछ विचारणीय तथ्य हैं । ब के स्थान पर वश के स्थान पर स का प्रयोग सामान्य रूप से किया गया है । र के बाद का व्यंजन दोहरा कर दिया है । म् के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग है । कहीं २ पर शब्द ही त्रुटिपूर्ण लिखे हैं जो उत्कीर्ण कर्ता की लापरवाही के कारण हैं । सभी त्रुटियां पाठ में सुधार दी गई हैं । तिथि पंक्ति ११ में शब्दों में व पंक्ति २९ में अंकों में दी है । यह "त्रिचत्वारिस सम्वत्सर सहस्र माघे मासि उदगयन पर्व्वणि " लिखी है । इसका भाव “त्रिचत्वारिशदधिके... अर्थात् संवत् एक हजार तेंतालीस माघ मास में उदगयन पर्व है । यह तिथि बुधवार, २२ दिसम्बर ९८६ ईस्वी के बराबर बैठती है । ताम्रपत्र लिख कर प्रदान करने की तिथि संवत् १०४३ माघ मास वदि १३ है, जो मास को पूर्णिमान्त मानकर गणित करने पर शुक्रवार ३० दिसम्बर, ९८६ ईस्वी के बराबर होती है । Jain Education International प्रमुख ध्येय पंक्ति ९ व आगे में वर्णित है । इसके अनुसार वाक्पतिराजदेव द्वितीय ने उपरोक्त तिथि को पूर्वपथक में निवास करते हुए उदगयन पर्व पर पुण्या ( ? ) नदी में स्नान कर भगवान भवानिपति की पूजा कर अवन्तिमंडल में उज्जयिनी विषय पूर्वपथक से सम्बद्ध म भक्ति में कच्छिक ग्राम दान में दिया । 39 दान प्राप्तकर्ता ब्राह्मण मगध के अन्तर्गत कणोपा ग्राम से देशान्तरगमन करके आया संकृतिगोत्री वह वृच आश्वलायन शाखी त्रिप्रवरी दीक्षित लोकानन्द का पुत्र सर्वानन्द था । वाक्पतिराजदेव के पूर्ववर्णित संवत् १०३८ के ताम्रपत्र में दानप्राप्तकर्ता ब्राह्मणों की सूची में सर्वप्रथम इसी ब्राह्मण का उल्लेख है, जब इसको सब से अधिक ८ भाग प्राप्त हुए 1 अतः संभव है कि वह प्रस्तुत ताम्रपत्र के दान-ग्राम में ही निवास कर रहा था । यह तथ्य भी रोचक है कि दोनों ताम्रपत्रों का प्राप्तिस्थान जहां पहले ग्राम से ४० अभिलेख के ग्राम से केवल ३ मील की दूरी पर है । मील की दूरी पर है, वहीं प्रस्तुत For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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