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________________ ३२ परमार अभिलेख ३६. दपुर से आये वाराह गोत्री त्रिप्रवरी वह वृचशाखी ब्राह्मण माहुल के पुत्र आशादित्य के लिये तीन ३ अंश लाट देश (ग्राम ? ) से आये ३७. काश्यप गोत्री त्रिप्रवरी वाजिमाध्यंदिन शाखी ब्राह्मण हरि के पुत्र भाइल के लिये एक १ अंश राजकीय ग्राम से आये वत्स गोत्री ३८. पंचप्रवरी छान्दोग्य शाखी ब्राह्मण लीलादित्य के पुत्र देवादित्य के लिये दो २ अंश लाट देश के अन्तर्गत नन्दिपुर से आये ३९. भारद्वाज गोत्री त्रिप्रवरी वाजिमाध्यंदिन शाखी ब्राह्मण ईश्वर के पुत्र मुंजाल के लिये दो २ अंश श्रवणभद्र से आये वत्स४०. गोत्री पंचप्रवरी वाजिमाध्यंदिन शाखी ब्राह्मण गुणाकर के पुत्र अमात के लिये तीन ३ अंश इस प्रकार क्रम से ४१. ऊपर लिखे इस ग्राम को ऊपर लिखे छब्बीस ब्राह्मणों के लिये माता पिता व निज पुण्य व यश की वृद्धि के लिये अदृष्ट फल ४२. को स्वीकार कर चन्द्र सूर्य समुद्र व पृथ्वी के रहते तक के लिये अत्यन्त भक्तिपूर्वक राजाज्ञा द्वारा जल हाथ में लेकर दान दिया है । इसको मान कर वहां के निवासियों ४३. पटेलों ग्रामीणों के द्वारा जिस प्रकार दिया जाने वाला भाग भोग कर हिरण्य आदि इस आज्ञा को मानकर सदा इनको (तीसरा ताम्रपत्र) ४४. ऊपर लिखे बद्धक्रम से देते रहना चाहिये और इसका सामान्य पुण्यफल जान कर हमारे वंश व अन्यों में होने वाले भावी ४५. नरेशों को मेरे द्वारा दिये गये इस धर्मदान को मानना व पालन करना चाहिये । और कहा है___ सगर आदि अनेक नरेशों ने वसुधा भोगी है और जब जब यह पृथ्वी जिसके अधिकार में रही है तब तब उसी को उसका फल मिला है ।।५।। यहां पूर्व नरेशों ने धर्म व यश हेतु जो दान दिये हैं, निर्माल्य एवं के के समान जान कर कौन सज्जन व्यक्ति इसे वापिस लेगा ॥६॥ हमारे वंश के उदार नियमों को मानने वालों व अन्यों को इस दान का अनुमोदन करना चाहिये क्योंकि इस बिजली की चमक और पानी के बुलबुले के समान चंचल लक्ष्मी का वास्तविक फल (इसका) दान करना और (इससे) परयश का पालन करना ही है ।।७।। सभी भावी नरेशों से रामभद्र बार बार प्रार्थना करते हैं कि यह सभी नरेशों के लिये एक समान धर्म का सेतु है , अतः अपने अपने काल में आपको इसका पालन करना चाहिये ।।८।। इस प्रकार लक्ष्मी व मनुष्य जीवन को कमलदल पर पड़ी जलबिन्दु के समान चंचल समझ कर और इस सब पर विचार कर मनुष्यों को परकीर्ति नष्ट नहीं करना चाहिए ।।९।। - ५२. इति संवत् १०३८ द्वितीय आषाढ़ सुदि १० और यहां स्वयं आज्ञा । ५३. दापक श्री रुद्रादित्य है । ये हस्ताक्षर स्वयं श्री वाक्पतिराजदेव के हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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