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________________ परमार अभिलेख पंक्ति ५-८ में दानकर्ता नरेश की वंशावली है जो पूर्ववणित अभिलेख के समान ही है। वंश का नामोल्लेख नहीं है । अभिलेख का अन्त मंगल से होता है । वाक्पतिराजदेव द्वितीय का यह प्राप्त अभिलेखों में अंतिम है । परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि उसने संवत् १०४३ के बाद राज्य नहीं किया । अमितगति रचित सुभाषित-रत्न संदोह में वर्णन है कि वह ग्रन्थ वाक्पतिराजदेव के शासनकाल में संवत् १०५० तदनुसार ९९३९९४ ई. में पूर्ण किया था (देखिये काव्यमाला सीरीज, क्रमांक ८२, पृष्ठ १०४, श्लोक ९२२, सम्पादक भवदत्त शास्त्री एवं परब, बंबई, १९०३) । वाक्पतिराज मुंज के प्रतिद्वन्दी तैलप द्वितीय की मृत्यु संवत् १०५४ तदनुसार ९९७ ईस्वी से कुछ ही पूर्व हुई थी (बाम्बे गजटीयर जिल्द १, भाग २, पष्ठ ४३२) । अतः वाक्पतिराजदेव द्वितीय का वध इन दोनों तिथियों के बीच किया गया होगा । भौगोलिक स्थलों में अवन्तिमण्डल मालवा का पश्चिमी भाग था । इसका केन्द्र उज्जैन था । अतएव उज्जयनी विषय पूर्वपथक निश्चित रूप से उज्जयिनी एक विषय के रूप में था । पूर्वपथक वस्तुतः उज्जयिनी का प्रशासकीय पूर्वी भाग था । वाक्पतितिराजदेव के संवत् १०३१ के धरमपुरी ताम्रपत्र में पश्चिम पथक का उल्लेख है । मद्धक भुक्ति संभवतः आधुनिक महु क्षेत्र था । वर्तमान में महु नरवल' से प्रायः ४० मील की दूरी पर है। कडहिच्छक ग्राम वर्तमान में नरवल से ३ मील उत्तरपश्चिम में स्थित कर्च या कड़च ग्राम है । पुण्याम्र नदी का अर्थ होता है 'पवित्र नदी।' लगता है यहां लेखक नदी का नाम लिखना भूल गया है । कणोपा ग्राम 'बिहार में पटना संभाग के शाहबाद जिले में केन्या या केन्वा नामक ग्राम होगा । २.. मूल पाठ (प्रथम ताम्रपत्र) १. ओं। याः स्फुर्जत्फणभृद्धिषानलमिद्भूमप्रभाः प्रोल्लसन्मू‘व (ब) द्धशशांकोटिघटिता याः सैहिकेयोपमाः । याश्चंचगिरिजाकपोललुलिताः कस्तूरिका विभ्रमास्ता श्रीकण्ठकठो ___ रकण्ठरुचयः श्रेयांसि पुष्णन्तु वः । [१] यल्लक्ष्मीवदनेन्दुना न सुखित (तं) यन्नादितं वारिघेारा यन्न नि जेन नाभिसरसीपद्मन शान्ति (न्तिं) गतं (तम्) । यच्छेषाहिफणासहस्रमधुरश्वासैन चाश्वासै (सितं तद्राधाविरहा तुरं मुररिपोर्वेल्लद्वपुः पातु वः ।। [२] परमभट्टारक-महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्रीकृष्णराजदेव६. पादानुध्यात-परमभट्टारक-महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्रीवैरिसिङह(सिंह)देव-पादानुध्यात-परमभ७. ट्टारक-महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्रीसीयकदेव-पादानुध्यात-परमभट्टारक-महाराजाधिराज-प८. रमेश्वर-श्रीमदमोघवर्षदेवापराभिधान-श्रीवाक्पतिराजदेव-पृथ्वीवल्लभ-श्रीवल्लभनरेन्द्रदेवः. ९. कुशली । अवन्तीमण्डले श्रीमदुज्जयनी-विषय-पूर्वपथक-सम्व' (म्ब)ध्यमान-मद्धक-भुक्त (क्तौ) कडहिच्छक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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