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परमार अभिलेख
यहां पूर्व के नरेशों द्वारा धर्म व यश हेतु जो दान दिये गये हैं, निर्माल्य एवं क के समान समझ कर कौन सज्जन व्यक्ति उसे वापिस लेगा ||४||
हमारे वंश के उदार नियमों को मानने वालों व अन्यों को इस दान का अनुमोदन करना चाहिये, क्योंकि इस बिजली की चमक और पानी के बुलबुले के समान चंचल लक्ष्मी का वास्तविक फल ( इसका ) दान करना और ( इससे ) परयश का पालन करना ही है ॥५॥
इन सभी भावी नरेशों से रामभद्र बार बार प्रार्थना करते हैं कि यह सभी नरेशों के लिये समान रूप धर्म का सेतु है । अत: अपने अपने काल में आपको इसका पालन करना चाहिये ॥ ६ ॥
इस प्रकार लक्ष्मी व मनुष्य जीवन को कमलदल पर पड़ी जलबिन्दु के समान चंचल समझकर और इन सब पर विचार कर मनुष्यों को परकीर्ति नष्ट नहीं करना चाहिये ||७|| २८. यह संवत् १०३६ चैत्र वदि ९
२९. गुणपुर में श्रीमत् महाविजय स्कन्धावार में निवास करते हुए ( यह लिखा गया ) स्वयं हमारी आज्ञा । और यहां दापक
३०. श्री रुद्रादित्य है । ये हस्ताक्षर स्वयं श्री वाक्पतिराजदेव के हैं ।
(६)
गाऊन का वाक्पतिराजदेव द्वितीय का ताम्रपत्र
(संवत् १०३८ = ९८१ ई०)
प्रस्तुत अभिलेख तीन ताम्रपत्रों पर खुदा हुआ है जो १९३१ ईस्वी में उज्जैन के पास नरवल से ३ मील उत्तर-पूर्व को गाऊनरी ग्राम में एक तालाब को खोदते समय प्राप्त हुए थे। इनका प्रथम उल्लेख एम. वी. गर्दे द्वारा ए. रि. आ. डि. ग., संवत् १९६७, पृष्ठ १०-११ पर किया गया। के. एन. दीक्षित ने इनका सम्पादन एपि. इं., भाग २३, १९३५-३६, पृष्ठ १०११११ पर किया । ताम्रपत्र नरवल के राव साहेब के पास सुरक्षित हैं ।
ताम्रपत्रों का आकार ३८x२७ और ४० x २६ सें. मी. है । इनमें लेख एक ओर ही खुदा है । इनके किनारे कुछ मोटे हैं व भीतर की ओर मुड़े हैं। इनमें दो-दो छेद हैं जिनमें तांबे की कड़ियां पड़ी हैं। तीनों ताम्रपत्रों का वजन ६.४३ किलो है ।
अभिलेख ५३ पंक्तियों का है । प्रथम ताम्रपत्र पर २३, द्वितीय पर २० व तृतीय पर १० पंक्तियां खुदी हैं । प्रत्येक पंक्ति में प्राय: ४८ अक्षर हैं । अक्षरों की बनावट सुन्दर है। तीसरे ताम्रपत्र पर दोहरी पंक्तियों के एक चतुष्कोण मुकुटधारी गरुड़ की आकृति बनी है जिसके बायें हाथ में फणदार सर्प है व दाहिना उसको मारने के लिये ऊपर उठा है। यह परमार राजचिह्न है । अक्षरों की बनावट १०वीं सदी की नागरी लिपि है । अक्षर पूर्ववर्णित धरमपुरी अभिलेख के अक्षरों के समान हैं, परन्तु यहां ये कुछ अधिक गोल हैं । भाषा संस्कृत है व गद्य-पद्यमय है । इसमें कुल ९ श्लोक हैं। शेष सारा गद्य में है ।
व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर सर्वत्र व का प्रयोग किया गया है । इसी प्रकार अनेक स्थलों पर श के स्थान पर स और स के स्थान पर श का प्रयोग मिलता है। म् के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया गया है । कुछ शब्द ही गलत खुदे हैं जो पाठ में ठीक कर दिये गये हैं । इनमें कुछ अशुद्धियां प्रादेशिक व काल के प्रभाव को प्रदर्शित करती हैं एवं कुछ उत्कीर्णकर्ता द्वारा बन गई हैं।
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