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उज्जैन अभिलेख
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के कपोलों पर बिखरी हुई कस्तूरिका के समान है, श्री शिवजी के कण्ठ की ऐसी कांतियां तुम्हारे कल्याणों को पुष्ट करें।।१।।
जो लक्ष्मी के मुखचन्द्र से सुखी नहीं हुआ, जो समुद्र से गीला (शान्त) नहीं हुआ, जो निज नाभिस्थित कमल से शांत नहीं हुआ और जो शेषनाग के हजारों फणों से निकले हुए श्वासों से आश्वस्त नहीं हुआ, वह राधा की विरह से पीड़ित मुरारि का अशान्त
शरीर तुम्हारा रक्षण करे ।।२।। ५. परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री कृष्णराजदेव के पादानुध्यायी परम६. भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री वैरिसिंहदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजा७. धिराज परमेश्वर श्री सीयकदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर ८. श्रीमत् अमोघवर्षदेव अन्य नामधारी श्रीमत् वाक्पतिराजदेव पृथ्वीवल्लभ श्रीवल्लभ नरेन्द्रदेव ९. कुशलयुक्त होकर तिणिसपद्र द्वादशक से संबद्ध महासाधनिक श्री महाइक द्वारा भोगे
जा रहे सेम्वलपुर ग्राम में १०. आये हुए समस्त राजपुरुषों, श्रेष्ठ ब्राह्मणों, आसपास के निवासियों, पटेलों और ग्रामवासियों
को आज्ञा देते हैं-- आपको ११. विदित हो कि हमारे द्वारा यह ग्राम संवत्सर एक हजार छत्तीस के कार्तिक की शुक्ल पक्ष
___ की पूर्णिमा को १२. चन्द्रग्रहण के पर्व पर श्री भगवत्पुर में वास करते हुए, हमारे द्वारा महासाधनिक श्री
महाइक की पत्नी १३. आसिनी की प्रार्थना पर, ऊपर लिखा ग्राम उसकी सीमा तृण-भूमि सहित गोचर तक साथ में
हिरण्य भाग भोग १४. उपरिकर सब प्रकार की आय समेत श्रीमत् उज्जयिनी भट्टारिका श्रीमत् भट्टेश्वरी देवी
के लिये स्नान १५. विलेपन पुष्प गंध धूप नैवेद्य और प्रेक्षण (जन द्वारा दर्शन) आदि के निमित्त तथा देवगृह
(मंदिर) में टूटफूट को ठीक करवाने हेतु १६. माता-पिता व स्वयं के पुण्य व यश में वृद्धि हेतु अदृष्टफल को स्वीकार कर चन्द्र सूर्य
समुद्र व पृथ्वी के रहते तक के लिये १७. परमभक्ति के साथ राजशासन द्वारा जल हाथ में लेकर दान दिया है। ऐसा मानकर
वहां के निवासियों
(दूसरा ताम्रपत्र)
१८. पटेलों व जनपदों के द्वारा जिस प्रकार से दिये जाने वाला भाग भोग कर सुवर्ण आदि
सभी कुछ हमारी आज्ञा को सुन कर मानते हुए १९. ये सभी पूर्णरूप से उसके लिये देते रहना चाहिये। इस पुण्यफल को समान रूप जान कर २०. हमारे व अन्य वंशों में उत्पन्न होने वाले भावि नरेशों को हमारे द्वारा दिये गये इस
धर्मदान को मानना व पालन करना चाहिये। कहा भी है-- ___ सगर आदि अनेक नरेशों ने वसुधा भोगी है और जब जब यह पृथ्वी जिसके अधिकार में रही है तब तब उसी को उसका फल मिला है।॥३॥
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