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________________ उज्जैन अभिलेख १९ इस अभियान में वाक्पतिराजदेव ने कहां पर एवं किस पर विजय प्राप्त की थी सो निश्चित करना सरल नहीं है। परन्तु हमें अन्य साक्ष्यों के आधार पर विदित है कि पश्चिम व उत्तर-पश्चिम की ओर वाक्पतिराजदेव ने तीन विभिन्न नरेशों से युद्ध कर विजय प्राप्त की थी। इनमें गुजरात का चौलुक्य नरेश मूलराज, मेवाड़ का गुहिल वंशीय नरेश शक्तिकुमार और नाडोल का चाहमान वंशीय नरेश बलराज सम्मिलित थे। अभिलेख में उल्लिखित भौगोलिक स्थानों में भगवत्पुर मन्दसौर जिले में सीतामऊ के दक्षिण-पश्चिम की ओर १७ किलोमीटर की दूरी पर चम्बल नदी पर स्थित भगोर नामक स्थान है। कार्तिक पूर्णिमा को चम्बल नदी में स्नान कर दान देने को आज भी पुण्य माना जाता है। प्रस्तुत दान भी कार्तिक पूर्णिमा को दिया गया था। सेम्बलपुर सीतामऊ से उत्तर-पूर्व को तितरोद से ८ कि. मी. की दूरी पर स्थित सेमलिया है। तिणिपद्र भगोर से उत्तर की ओर ६ कि. मी. की दूरी पर तितरोद ग्राम है। वेस्टर्न स्टेट्स गजटीयर (भाग ५, पार्ट १, १९०७, पृष्ठ ३४८ व ३५०) में सी. ई. लुअर्ड ने उक्त सभी स्थानों को पवित्र स्थल के रूप में निरूपित किया है। गुणपुर संभवतः धार नगर से उत्तर पूर्व की ओर १२ कि. मी. की दूरी पर स्थित लेबड के पास गुणावद है। महासाधनिक एक सैनिक प्रशासनिक अधिकारी अथवा सैनिक गवर्नर होता था। मेरुतुंग रचित प्रबंधचिन्तामणि में इसी भाव से इस अधिकारी का उल्लेख प्राप्त होता है (देखिये प. रा. इ-डी.सी. गांगुली, पृष्ठ १७६)। उत्तरकालीन संवत् १३३१ तदनुसार १२७४ ईस्वी के जयवर्मन द्वितीय के मान्धाता अभिलेख में साहनीय (संस्कृत : साधनिक) का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसका अर्थ डी. सी. सरकार 'सेनाध्यक्ष' लगाते हैं (ऐपि. इं., भाग ३२, पृष्ठ १४१-४२)। मूलपाठ (प्रथम ताम्रपत्र) १. ओं यः (याः) स्फुर्जित्फण] भृद्विषानलमिलद्धूभ्र (द्ध म्र)प्रभाः प्रोल्लसन्मूर्धाबद्धशशाङककोटिघटिता याः संहिकेयोपमाः । या[श्चञ्च] गिरिजाकपोललुलिताः कस्तूरिकाविभ्रमास्ताः श्री कण्ठकठोरकण्ठ[रु]चयः श्रेयांसि पुष्णन्तु वः ।। [१॥] यल्लक्ष्मीवदनेन्दुना न सुखितं यन्नाद्रितं वारिधेर्वारा यन्न निजेन नाभिसरसीपोन शान्ति . गतम् । यच्छेषाहिफणासहस्रमधुरश्वासन चाश्वासितं तद्राधाविरहातुरं मुररिपोर्बेलद्वपुः पातु वः ॥[२] परमभट्टारक-महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्रीकृष्णराजदेव-पादानुध्यात-परम६. भट्टारक-महाराजाधिराज-परमेश्वर-श्रीवैरिसिङघ (सिंह) देव-पादानुध्यात-परमभट्टारक-महारा७. जाधिराज-परमेश्वर-श्री सीयकदेव-पादानुध्यात-परमभट्टारक-महाराजाधिराज-परमे८. श्वर-श्रीमदमोघवर्षदेवापराभिधान-श्रीमद्वाक्पतिराजदेव-पृथ्वीवल्लभ-श्री वल्लभनरेन्द्र दे९. वः कुशली। तिणिसपद्रद्वादशक-सम्व (संब) द्धमहासाधनिक-श्री महाइकभुक्त-सेम्बलपुरकग्रामे स१०. मुपगतान्समस्तराजपु[रु]षान्वा (ब्राह्मणोत्तरान्प्रतिवासि-पट्टकिल-जनपदादींश्च बोधयति । अस्तु वः सम्वि (संवि) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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