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________________ १८ परमार अभिलेख ताम्रपत्र आकार में ३२.३८४ २४.१३ सें. मी. हैं। इनमें लेख भीतर की ओर खुदा है। दोनों ताम्रपत्रों में दो-दो छेद बने हुए है जिनमें कड़ियां पड़ी थीं। दोनों ताम्रपत्रों के किनारे कुछ मोटे हैं व भीतर की ओर मुड़े हैं। दोनों ताम्रपत्रों का वजन २.१ किलोग्राम है। ____ अभिलेख ३० पंक्तियों का है। प्रथम ताम्रपत्र पर १७ व दूसरे पर १३ पंक्तियां खुदी हैं। सारा अभिलेख अच्छी हालत में है। दूसरे ताम्रपत्र पर नरेश, के हस्ताक्षर हैं। इसके अक्षरों की बनावट पूर्ववणित धरमपुरी के वावपतिराजदेव द्वितीय के अभिलेख से मिलती है। __ व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से इसमें कुछ विचारणीय तथ्य हैं। ब के स्थान पर व का प्रयोग सामान्य रूप से किया गया है। र के बाद का व्यंजन दोहरा कर दिया गया है। ये प्रादेशिक व काल के प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं। उत्कीर्णकर्ता द्वारा कुछ अन्य अशुद्धियां भी हो गई हैं जो पाठ में सुधार दी गई हैं। अभिलेख में दान देने व ताम्रपत्र लिखवा कर प्रदान करने की दो विभिन्न तिथियों का उल्लेख है। भूदान देने की तिथि पंक्ति क्र. ११ में शब्दों में संवत्सर एक हजार छत्तीस, कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा दी गई है। उस रात चन्द्रग्रहण था। यह तिथि ६ नवम्बर ९७९ ईस्वी के बराबर निश्चित होती है। आगे पंक्ति २८ में ताम्रपत्र प्रदान करने की तिथि अंकों में संवत् १०३६ चैत्र वदी ८ दी गई है। यह शनिवार २७ मार्च ९८० ईस्वी के बराबर बैठती है। इस प्रकार ताम्रपत्र भूदान के चार मास बाद प्रदान किया गया था। प्रमुख ध्येय पंक्ति क्र. १२ व आगे में वर्णित है। इसके अनुसार श्री वाक्पतिराजदेव द्वारा महासाधनिक श्री महाइक की पत्नी आसिनी की प्रार्थना पर तिणिसपद्र द्वादशक (१२ ग्रामों का समूह) से संबद्ध सेम्बलपूर ग्राम दान में दिया गया था। ग्रामदान उज्जियिनी भट्टारिका श्रीमत् महेश्वरी देवी के लिये स्नान विलेपन पुष्प गंध धूप और नैवेद्य प्रेक्षण आदि के निमित्त तथा देवगृह में टूट-फूट को ठीक करवाने हेतु दिया गया था। यह देवी उज्जैन में वर्तमान हरसिद्धि देवी है जिसका मंदिर महाकाल मंदिर के पास ही स्थित है। इसकी मान्यता महाकाल के समान ही है। अभिलेख का प्रारम्भ ओं से होता है जो एक चिह्न द्वारा अंकित है। फिर ईशवन्दनायुक्त भगवान शिव व विष्णु की स्तुति है। तत्पश्चात् दानकर्ता नरेश की वंशावली है जो इसी नरेश के पूर्ववणित संवत् १०३१ के धरमपुरी अभिलेख के समान ही है। इसमें वंश का नामोल्लेख नहीं है। दापक का नाम रुद्रादित्य लिखा है। अन्त में नरेश के हस्ताक्षर हैं। इस अभिलेख के संबंध में यह विचारणीय है कि भूदान प्रदान करने व दानपत्र लिखवा कर देने में चार मास की देरी क्यों हुई। पंक्ति क्र. १२ में लिखा है कि नरेश द्वारा भगवत्पुर में वास करते हुए महासाधनिक श्री महाइक की पत्नी आसिनी की प्रार्थना पर भूदान दिया गया था, जबकि पंक्ति क्र. २९ में लिखा है कि गुणपुर में महाविजय स्कन्धावार में निवास करते हुए नरेश ने ताम्रपत्र लिखवा कर प्रदान किया था। इनके आधार पर अनुमानतः नरेश वाक्पतिराज देव द्वितीय उत्तर की ओर किसी आक्रमणकारी शत्रु से लोहा लेने अथवा विजय करने के अभिप्राय से अपने सेनाध्यक्ष श्री महाइक के साथ जा रहा था, जब चम्बल नदी के किनारे भगोर में स्थित उसने कार्तिक पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण के अवसर पर उज्जैन भट्टारिका महेश्वरी देवी के निमित्त भूदान दिया। चार मास पश्चात् अपने कार्य में सिद्धि प्राप्त कर वापिस लौटते हुए धार नगरी के पास गुणावद में महाविजय नामक अपने स्कंधावार अथवा सैनिक पड़ाव में स्थित उसने दानपत्र लिखवा कर निस्सृत कर दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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