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________________ (३९) शिव मंदिर के लिये दान में दिये गये थे। इन उल्लेखों से निश्चित होता है कि दानकर्ता अपने अपने संघों के प्रधान थे तथा उनको दान आदि करने की शक्तियां प्राप्त थीं। इसी प्रकार उनको अन्य अनेक प्रकार की शक्तियां भी प्राप्त रही होंगी। व्यापारी वर्ग अपनी वस्तुओं के बेचने को लिये अन्य नगरों में भी ले जाते थे। ये व्यापारी प्रायः समूहों में चलते थे जिससे लटेरों व डाकुओं से सुरक्षित रहें। सामान लाने लेजाने के लिये प्राय: बैलगाड़ियों, अश्वों व ऊंटों आदि का प्रयोग होता था। बहुत सा माल नदियों के रास्ते नावों द्वारा ले जाया जाता था। व्यापारिक माल पर कर एवं चुंगी आदि लगती थी। तौल व माप परमार अभिलेखों में तौल व माप आदि के विभिन्न परिमाणों के विवरण प्राप्त होते हैं। ये विभिन्न वस्तुओं के लिये प्रयोग में लाये जाते थे। उनमें निम्नलिखित के उल्लेख हैं: भरक---यह नारियल, मिश्री, गुड़, रुई, व अनाज आदि के लिये प्रयुक्त होता था। घटक, कुम्भ, घाणी, पलिका, कर्ष व पाणक--मक्खन व तेल मापने के लिए प्रयुक्त होते थे। चुंबक---मादक पेय को मापने के लिये प्रयुक्त होता था। कडव, भटक, हारक वाप व मष्ठि--जौ व अनाज मापने के लिये प्रयुक्त होते थे। ब्रोणाकारी, मानी--अनाज तोलने के लिये प्रयक्त होते थे। इन सभी का वर्तमान में चाल परिमाणों से सभीकरण करना तो सरल नहीं है, परन्तु मानक संभवतः आधुनिक मन के समान रहा होगा। भमि के नापों के लिये हलवाह, निवर्तन, दण्ड एवं बिस्वे के उल्लेख अभिलेखों में मिलते हैं। हलवाह भमि का वह भाग है जो एक हल द्वारा एक दिन में सरलता से जाता जा सकता था । परन्तु इसका ठीक ठीक परिमाण ज्ञात करना सरल नहीं है, क्योंकि विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न समयों में विभिन्न प्रकार के हलों का प्रयोग होता था । इसके अतिरिक्त जोतने का परिमाण भूमि की किस्म तथा बैलों की शक्ति पर निर्भर था। फिर भी हलवाह का परिमाण तो निश्चित रहा ही होगा। श्रीधर रचित गणितसार के अनुसार एक हलवाह ४८३८४० यव अथवा एक कोस के तिहाई भाग के बराबर होता था। निवर्तन का अर्थ विभिन्न विद्वानों ने अलग अलग लगाया है। प्राणनाथ विद्यालंकार के अनुसार निवर्तन एक एकड़ भूमि के बराबर होता था। (ए स्टडी इन इकानोमिक कंडीशन्स ऑफ ऐशंट इंडिया, पृष्ठ ८३) । परन्तु डी.सी. सरकार के अनुसार निवर्तन भूमि का वह नाप था जो २४० X २४० वर्ग क्यूबिट्स अर्थात् तीन एकड़ के बराबर होता था ( सक्सेस ऑफ दी सातवाहनस, पृष्ठ ३००, पादटिप्पणी)। अनेक स्थानों पर भूमि दण्ड के मान से नापी जाती थी। इसको पर्व भी कहते थे। इसमें नरवर्मन् का संवत् ११६७ का कदम्बपद्रक अभिलेख सहायक है । उस अभिलेख के अनुसार नरेश द्वारा २० निवर्तन भूमि दान में दी गई थी जो दण्ड के मान से ९६ पर्व लम्बी व ४२ पर्व चौड़ी थी। परन्तु इससे पर्व की ठीक लम्बाई ज्ञात नहीं होती। ___ इसी प्रकार मार्ग की दूरी को नापने के लिए क्रोश, योजन, गव्यूति आदि शब्दों का होता था। एक कोस (क्रोश) संभवतः दो मील के बराबर होता था। इस दष्टि से योजन ४ कोस अथवा ८ मील के बराबर होता था। इसी प्रकार गव्यूति भी एक कोस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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