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________________ (३७) स्त्री द्वारा शासन करने अथवा प्रशासन में सीधे हस्तक्षेप करने का कोई उल्लेख नहीं है। प्रतीत होता है कि उनके कार्यक्षेत्र राजप्रासाद तक ही सीमित थे। अभिलेखों में वह माता के रूप में पूज्य है। नरेश यशोवर्मन् ने ११३५ ई. में अपनी माता मोमलादेवी की वार्षिकी पर भूदान किया था (क्र. ४६)। राजनीतिक संधियों के फलस्वरूप कुछ राजकुमारियों के विवाहों के उल्लेख हैं। तिलकमञ्जरी के अनुसार उदयादित्य की पुत्री श्यामलदेवी का विवाह गुहिल नरेश से हुआ था। जगदेव को पुत्री का विवाह वंगनरेश से हुआ था । अर्जुनवर्मन् को प्रथम महिषी कुन्तल राजकुमारी तथा दूसरी चौलुक्य राजकुमारी थी। विद्यापीठ परमार युग साहित्यिक विकास के लिये विशेष रूप से विख्यात है। परमार राज्य में अनेक स्थलों पर विद्यापीठे स्थापित की गईं थीं। राजधानी धारा नगरी में स्थित भोजशाला विद्या का सर्वविख्यात केन्द्र था। वहां की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती थी। इसी प्रकार मांडू में एक सरस्वती सदन स्थापित किया गया था, जो धार में स्थित भोजशाला के अनुरूप र था। राज्य में अनेक स्थानों में मठ बने थे जहां शैवाचार्य, अथवा मठ के अनुरूप, जैनाचार्य धार्मिक शिक्षा प्रदान करते थे। धार में पार्श्वनाथ जिनविहार शिक्षा का केन्द्र था। उज्जयिनी में शैवमठ विद्यमान था जिसकी ख्याति देश में फैली थी। आबू क्षेत्र में एक शाक्तपीठ तथा एक जैनपीठ स्थापित थे। जालौर में ११६५ ईस्वी में कुमार विहार की स्थापना की गई थी जिसमें जैन आचार्य निवास करते थे। विद्यापीठों के अतिरिक्त राज्य के प्रत्येक मंदिर में एक विद्यालय होता था। तिलकमञ्जरी में नरेशों द्वारा समय समय पर साहित्यिक गोष्ठियां करवाने के उल्लेख मिलते हैं। इन गोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर सारगर्भित चर्चायें होती थीं। यहां पर बाहर से मालव राज्य में आए विद्वानों द्वारा अपनी विद्वता प्रदर्शित करने के अवसर प्राप्त होते थे। विद्वानों को राज्य की ओर से पारितोषिक दिये जाते थे। साथ ही उनको जीवन यापन की सुविधायें प्रदान की जाती थीं। इस प्रकार परमार युगीन समाज सुखी व समृद्ध था। देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा मालव राज्य में साहित्यिक गतिविधियां अधिक विकसित थीं। इन्हीं कारणों से परमार युग तत्कालीन अन्य राजवंशों की अपेक्षा अधिक स्मरणीय हो गया है। आर्थिक व्यवस्था सुदढ़ आर्थिक स्थिति अभिलेखों से प्राप्त विवरणों से ज्ञात होता है कि परमार साम्राज्य की आर्थिक व्यवस्था अत्यन्त दृढ़ थी। मालव भूमि सदा अत्यन्त हरीभरी एवं उपजाऊ होने के साथ खनिज पदार्थों से भरपूर रही है। यही सदा ही धनधान्य की अत्यधिक प्रचुरता रही है। देश के इस भूभाग में कभी सूखा अथवा अकाल पड़ने का उल्लेख नहीं मिलता। यही कारण है कि परमार नरेश प्रायः प्रत्येक वर्ष विजय अभियान चलाने में सक्षम रहते थे। वे पावन अवसरों पर लाखों की उपजाऊ भूमि एवं धन-सम्पत्ति आदि ब्राह्मणों तथा याचकों को दान में देते रहते थे। साथ ही साहित्यिक गतिविधियों को आर्थिक सहायता द्वारा सदा प्रोत्साहित करते रहते थे। मालव राज्य नगरों एवं ग्रामों से भरपूर था। अभिलेखों में इन नगरों एव ग्रामों के नाम लिखे मिलते हैं। नगरों में उद्योग-धन्धे एवं वाणिज्य-व्यवसाय केन्द्रित थे। उनमें ही धन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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