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________________ (क्र. ६), नवगांव, दक्षिणराढ़ (क्र.८०), पौंड्रिक, उत्तरकुल (क्र.६), मथुरा (क्र.६५), मुताक्थु (क्र. ६५), मध्यप्रदेश (क्र. ६, ६५), मधुपालिका (क्र. ६), महावन (क्र. ६५), मान्यखेट (क्र. १३), मुक्तावसु (क्र. ५९, ६०, ६१), मितिलपाटक, सावथिका (क्र. ६), राजकीय (क्र. ६), वल्लोटक (क्र. ८), लवणपुर (क्र. ७६), लाट देश (क्र. ६), विल्वगवास, दक्षिणराढ़ (क्र.६), विलाक्ष ग्राम (क्र. ६), सरस्वती स्थान (क्र. ६५), शृंगपुर, मध्यदेश (क्र. ३८), श्रवणभद्र (क्र. ६), सोपुर (क्र. ६), श्रीवादा वेल्लुवल्ल, कर्नाटक (ऋ. १२), स्थानेश्वर (क्र. ६), हस्तिनपूर (क्र. ६५, हर्षपूर (क्र. ८)। यह सूचि देख कर आश्चर्य होता है कि सूदुर दक्षिण व पूर्वीराज्यों से लम्बी यात्रायें करके विद्वान ब्राह्मण किस प्रकार बहुत बड़ी संख्या में मालव भूमि में आ कर बस गये। क्षत्रिय __ अभिलेखों में क्षत्रियों का उल्लेख नहीं है। वास्तव में उनके उल्लेख का कोई अवसर ही न था। कुछ वीरों के युद्ध क्षेत्रों में शौर्य प्रदर्शन के विवरण अवश्य प्राप्त होते हैं। संभवतः उनके नामों के अन्त में वर्मन् शब्द जुड़ा होता था। यह भी संभावना है कि प्रान्तों के राज्यपालों व माण्डलिकों में से कुछ क्षत्रिय रहे होंगे । परन्तु परमार नरेशों के पूर्णतः क्षत्रिय होने की संभावना न्यून प्रतीत होती है। संभवतः राज्यपालों के पदों पर उनके कौटुम्बिक ही रहे होंगे। जो भी हो शासनकर्ता नरेश अपने वर्ण की परवाह न करते हुए जीवनान्त युद्धक्षेत्र में करना पूर्णतः श्रेययुक्त मानते थे। वैश्य . आशा की जा सकती है कि परमार साम्राज्य में वैश्यों की संख्या पर्याप्त रही होगी। ये अधिकतर व्यापार वाणिज्य में संलग्न थे। कुछ लोग साहूकारी करते होंगे । वैश्य लोग खेतीबाड़ी एवं पशुपालन करते होंगे। इस प्रकार इनका मुख्य कार्य धनोपार्जन था । ये धन-धान्य के स्वामी थे। इस कारण समाज में निश्चित रूप से अधिक सम्मानित रहे होंगे । श्रेष्ठिन् लोग राजसभा में सम्मानित होते थे। कुछ अभिलेखों में उनके द्वारा मंदिर निर्माण करवाने एवं जन-कल्याण कार्य हेतु दान देने के उल्लेख मिलते हैं। व्यापारियों के संघों के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। ___अभिलेखों में अन्य उद्योग धन्धे करने वालों के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं, जैसे स्वर्णकार, स्थपति (भवन निर्माता), सूत्रधार (सुतार), तेली, रूपकार आदि । कायस्थ .. अभिलेखों में कायस्थों के उल्लेख भी हैं। इनमें अभिलेखों के लेखक सम्मिलित हैं। कुछ कायस्थों ने प्रशासनिक कार्य, न्यायाधीश का कार्य अथवा गणक आदि के कार्य भी सम्पन्न किये थे। अभिलेख क्र. १, २, १६ में कायस्थ तथा क्र. ७१ में कायस्थ पंडित के उल्लेख प्राप्त होते हैं। अन्त्यज अभिलेखों में इनका कोई उल्लेख नहीं है। इनके उल्लेख का कोई अवसर ही नहीं है। स्त्रियों की स्थिति ___ अभिलेखों में स्त्रियों के संबंध में कोई विशेष उल्लेख नहीं है। केवल कुछ रानियों तथा विशिष्ट अधिकारियों की माताओं अथवा पत्नियों द्वारा दान करने के उल्लेख हैं। परन्तु किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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