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मांधाता अभिलेख
१७.
बलवान से स्पर्धा करने वाले किसका कल्याण होता है ? हे विनयन, आपके क्रोधयुक्त तृतीय नेत्र से जो वंचित है उसने प्रेमपूर्वक अधरोष्ठ का चुम्बन करके विलासपूर्वक नृत्य करने वाली चतुर नारियों के कटाक्षों के देखा है ।
जो दारिद्र से दुर्बल है, जो दुर्भाग्य से जल रहा है, जो शत्रुओं के संकट से व्याकुल है, जो मूर्खता से अभितप्त है, अथवा जो किन्हीं दुख शोकों से पीड़ित है, हे त्रिनयन, तृषितों को जल के समान इन सबके आप ही एकमात्र शरण हैं ।
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हे ईश, आपके जिन भक्तों के हाथ आपके मंदिरों को लीपने में जलयुक्त गोबर से लथपथ हो गये हैं, वे स्वर्ग नगरी के नायकत्व को प्राप्त होकर उनके हाथ स्वर्ग की अप्सराओं के स्तनों पर कस्तूरी लीप रहे हैं (कस्तूरी पत्र रचना करते हैं) ।
२२.
हे चन्द्रशेखर, जो भक्त आपको पञ्चामृत से स्नान करवा कर बाद में मस्तक पर पुष्पों की माला बांधता है, निश्चय ही उसके मस्तक पर समस्त भुवन के एकाधिपत्य का अभिषेक कर परमैश्वर्य साम्राज्य के मुकुट का बंधन करते हैं ।
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उत्तम कुल में जन्म, उत्तम वृत्तान्त का अध्ययन, सत्कर्मों में प्रवृत्ति, शास्त्रों का प्रौढ़ ज्ञान, लालित्य से मनोहर संस्कार संपन्न वाणी, विपुल लक्ष्मी, सुडौल शरीर, ये सभी विशेषताएं होने पर भी, हे चन्द्रशेखर, यदि आपकी चरण सेवा से विरक्ति है तो सब व्यर्थ ही है ।
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आपकी पूजा हेतु फूल लाने के लिए दौड़ने से जो चरणयुगल पत्थरों के समूह पर जख्मी गए थे, आप अनुसरण करने वाले रूद्रलोक को पहुंचे हुए उस भक्त के चरणयुगल को ब्रह्मादि दोनों के मुकुटमणि किरण लालिमा प्रदान करती है ।
२५. हे नीलकण्ठ, जो भक्त अत्यन्त सुगंध फैलाने वाले कदम्ब कुसुमों से पुष्पमाला निर्माण कर आपके कण्ठाभूषण स्थान पर समर्पण करेगा, उसे भी आप स्वर्ग में दिव्यांगनाओं के रोमांचित-बहुओं से गाढ़ालिंगन सुख प्रदान करते हैं ।
हे नाथ, वह आश्चर्य मैंने न तो कभी देखा है, न सुना है । इसे स्पष्ट करके कहिये, मुझे महान कौतुहल है। जो आपके चरणों पर भक्ति से चढ़ाया हुआ एक पुष्प ही तत्काल करोड़ों अभिलाषाओं का पूरक हो जाता है।
हे वरद, जो भक्त भक्तिपूर्वक आपके चरणयुगल पर नील कमल की एक पंखुड़ी भी समर्पण करेगा, उस पर आपके अनुग्रह से दिव्यांगणाओं के नीलकमल के समान दीर्घ नेत्र कटाक्ष गिरते रहते हैं ।
अष्टमूर्ते ! जो भक्त आपकी अर्चना करके आदरपूर्वक साष्टांग प्रणाम करता हुआ पृथ्वी पर लौटता है, उसे शीघ्र ही भूपतिपद प्राप्त होकर पृथ्वी स्नेहाकृष्ट होती हुई धूलभरी आंधी के रूप में उसकी गोद में लोटने लगती है ।
हे त्रिनयन, जो भक्त ज्योति की ज्वाला से, जिसने अंधकार नष्ट कर दिया है तथा गृह को प्रकाशित कर दिया है, ऐसा दीपक आपको समर्पित करता है, उसे आपकी मायारूपी रात्रि के गूढ़ अंधकार नष्ट करने में समर्थ आत्मा में प्रकाशित होने वाला ज्ञानदीप प्रदान करते हैं ।
हे हर, जो भक्त चित्रविचित्र पुष्पमाला से तेरा पूजन करके 'जयमहादेव' के घोष से तेरी स्तुति करता है, वह तेरे अनुग्रह से शिवलोक में आरोहण करता हुआ मस्तक पर मौली बांधे हुए इन्द्रादि देवगणों की स्तुति का विषय बन जाता है ।
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