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________________ (२८) मण्डपिका नगरों में मण्डियों की देखरेख एवं व्यापारिक वस्तुओं पर चुंगी उगाहने वाले कार्यालय को मण्डपिका कहते थे। मण्डपिका का मुख्य अधिकारी शौकिक कहलाता था। उसकी सहायता के लिये कछ अन्य शासकीय कर्मचारी तथा जनप्रतिनिधि समिति के सदस्य होते थे। शेरगढ़ भलेख (क्र. २९) में सोमनाथ मंदिर में भट्टारक नग्नक के लिये तीन व्यापारियों द्वारा मण्ड पिकाकर से कुछ भाग दान करने का उल्लेख प्राप्त होता है। निश्चित ही ये व्यापारी ऐसी ज नसमिति के सदस्य रहे होंगे । इसी कारण वे प्राप्त कर में से कुछ भाग दान में दे सके थे। संघ निर्माण परमार अभिलेखों में श्रेष्ठिन्, स्थपति, नाग बनिया, लार बनिया, सुनार, तेली आदि के उल्लेख बहुवचन में प्राप्त होते हैं। इस आधार पर अनुमान होता है कि परमार राज्य में विभिन्न समाजों के संघ रहे होंगे। संघ का अध्यक्ष नगर के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता होगा। वह अपनी समाज की ओर से आवश्यकता के अनुसार दान आदि कर सकता होगा । शेरगढ़ अभिलेख (क्र.२९) में तैलिकराज ठक्कर देवस्वामिन् ने सोमनाथ मंदिर के श्रेय हेतु विभिन्न दान दिये थे। निश्चित ही ये दान उसने अपनी समाज की ओर से संघ के अध्यक्ष होने के नाते दिये होंगे। भोजदेव प्रथम के मोडासा अभिलेख (क्र. ८) में देई नामक एक ब्राह्मण दानकर्ता को चातुर्जातकीय उपाधि से विभूषित किया गया है। डी. सी. सरकार के अनुसार वह चार श्रेष्ठ व्यक्तियों की समिति का सदस्य रहा होगा। अन्य सुझाव इसमें जातक शब्द को ज्योतिष मान कर इसको ज्योतिर्विद सभा का सदस्य स्वीकार करने की ओर है। ग्राम व्यवस्था ग्रामों में ग्रामवासी अपने यहां की दैनिक व्यवस्था में अधिक संलग्न रहते थे। ग्राम के मुखिया को ग्रामकूट अथवा ग्रामटक (एपि.ई., भाग १९, पृष्ठ ५५-६१) कहते थे। वह ग्राम का सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति होता था। उसका पद प्रायः वंशानुक्रम से होता था। वह ग्राम सेना का भी मुखिया होता था। ग्राम रक्षा उसका प्रमुख कर्त्तव्य था । __ ग्रामों में अपने पञ्चकुल होते थे। परमार अभिलेखों में पट्टकिल, राज्य की ओर से नियुक्त पटेल एवं जनपद अर्थात् ग्रामवासियों के उल्लेख मिलते हैं । इस प्रकार ग्रामों की व्यवस्था करने में राजकीय अधिकारी, जनता के प्रतिनिधि पञ्च तथा समस्त ग्रामवासी सामूहिक रूप से होते थे। तभी तो उस यग के ग्राम पूर्णतः स्वतंत्र इकाई के रूप में विद्यमान थे। राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था में उपरोक्त के अतिरिक्त निम्नलिखित अधिकारी भी सम्मिलित थे:-- तलार अथवा तलाराध्यक्ष-यह आधुनिक नगर कोतवाल के समान पुलिस अधिकारी होता था। दण्डपाशिक-यह एक पुलिस अधिकारी था जो अपने पास दण्ड एवं पाश (हथकड़ी) रखता था। वह आंतरिक शांति स्थापित करने के लिये उत्तरदायी होता था। वह दोषी व्यक्तियों को बंदी बना कर न्यायालय में उपस्थित कर उनको दण्डित करवाता था। चौरिक-यह अधिकारी चोरों को पकड़ने के लिये नियुक्त होता था। शौकिक-यह राज्य की और से नियुक्त सभी प्रकार के शुल्क एकत्रित करने वाला अधिकारी था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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