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________________ (२९) गोकुलिक - यह अधिकारी राज्य की ओर से चरागाहों की देख रेख करता था । पट्टकिल - पट्टकिल नामक अधिकारी की नियुक्ति ग्रामों में होती थी। वह खेती योग्य समस्त भूमि का हिसाब किताब रखता था। खेतों की सीमाओं का निर्धारण करता था। चूंकि यह ग्राम का एक महत्वपूर्ण तथा प्रमुख अधिकारी था इसी कारण सभी भूदान अभिलेखों में इसका उल्लेख अनिवार्य रूप से किया जाता था । राज्याध्यक्ष- यह संभवतः एक न्यायिक होता था जो ग्रामों के झगड़ों का निबटारा करता था । उपरोक्त के अतिरिक्त राज्य में कुछ अन्य अधिकारी भी होते थे जिनके परमार अभिलेखों में उल्लेख मिलते हैं, जैसे अमात्य ( क्र ४३ ), अमात्यपुत्र ( क्र. १६), राजपुरुष ( समस्त दानपत्र अभिलेखों में ), वीसी (क्र. १८) तथा साधनिक ( क्र. ७६ ) । इस प्रकार परमार राजवंशीय अभिलेखों में प्राप्त तथ्यों से परमार साम्राज्य के शासन प्रबंध के बारे में प्रायः पूर्ण चित्र उजागर होता है । इसका अध्यक्ष नरेश था तथा वह विभिन्न शासकीय व अशासकीय अधिकारियों के माध्यम से प्रशासन का संचालन करता था । वस्तुतः उस युग में देश में विभिन्न राज्यों का प्रशासन प्राय: समान था । परन्तु परमार प्रशासन की विशिष्टता उसकी सांस्कृतिक देन एवं जनकल्याण की भावनाओं से ओतप्रोत होने से अत्यधिक थी । वाक्पति मुंज एवं भोज के समान नरेशों ने अपने राज्य को लक्ष्मी, सरस्वती एवं शक्ति का निवास बना कर अपने युग को चिरस्मरणीय बना दिया जिसका अनुसरण भावी पीढ़ियों के लिये स्पर्धा का विषय बन गया । धार्मिक व्यवस्था परमारों के अधीन मालव राज्य में ब्राह्मण धर्म का चहुं ओर प्रसार हुआ। इस युग में वैदिक यज्ञ हवनों के साथ साथ भक्ति का सिद्धान्त अत्यन्त लोकप्रिय बना । परमार नरेशों ने अपने साम्राज्य में विभिन्न स्थानों पर हिंदू देवी देवताओं के मंदिर बनवाकर एवं ब्राह्मणों को भूमि दान में दे कर हिन्दू धर्म के प्रसार एवं विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया । देवी-देवता हिन्दू धर्म में विष्णु, शिव, ब्रह्मा, सूर्य, पार्वती, सरस्वती एवं अन्य अनेक देवी देवता सम्मिलित थे । परन्तु इतने अधिक देवी देवताओं एवं धार्मिक विश्वासों के विद्यमान रहते हुए भी आपसी मतभेद अथवा असहनशीलता कहीं देखने में नहीं आती। वे सर्वशक्तिमान ईश्वर के विभिन्न रूप माने जाते थे । इस प्रकार असाधारण सांस्कृतिक एकता देखने को मिलती है। fra fasणु एवं अन्य देवी देवताओं के मंदिर पास पास स्थित होते थे । परमार नरेशों ने विभिन्न देवी देवताओं को अपना आराध्य देव मानकर प्रतिष्ठित किया । यद्यपि परमार नरेश प्रधानतः शिव के भक्त थे परन्तु अपने राजचिन्ह पर विष्णु वाहन गरुड़ को अंकित करते थे । विष्णु की विभिन्न रूपों में पूजा होती थी जैसे नृसिंह, मत्स्य, वराह, राम, परशुराम, कृष्ण आदि । इसी प्रकार अन्य देवताओं के संबंध में भी है। परमार नरेशों में सीयक द्वितीय नृसिंह अवतार के रूप में विष्णु का पुजारी था । वाक्पति द्वितीय मुरारी कृष्ण को मान्य करता था । नरवर्मन् ने स्वयं के लिये 'निर्वाण नारायण' की उपाधि को चुना था एवं वह विभिन्न अवतरणों में विष्णु का पुजारी था। अर्जुनवर्मन् लक्ष्मीपति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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