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भिलसा अभिलेख
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४. हादे]व श्रेय (यो) निमितं कु५. प्तका[स्थ] देवी सानु६. मति (त्या) द्वोर्मेलं प्र७. दत्तं यो न द८. दाति तस्य मा९. ता (तरं) गर्दभो ज१०. भाति (यभति) [1]
(अनुवाद १. सिद्धि हो। संवत् १३२० वर्ष में वैशाख सुदि ३ गुरुवार आज यहां.....
२. श्री भैलस्वामिदेवपुर में श्री जयसिंहदेव के राज्य में ३-४. पुमानि के नायक पंडित ठकुर मदनसिंहदेव के श्रेय के निमित्त ५-७. कुप्तका में ठहरी देवी सानुमति के द्वारा द्वोर्मेल का दान दिया है। जो (इस दान को
____ मान्यता) नहीं ८-१०. देता उसकी माता के साथ गर्दभ कुकर्म करता हैं (करेगा)।
(७४)
वलीपुर (अमझेरा) का जयसिंह द्वितीय का स्मारक-स्तम्भ अभिलेख .
(संवत् १३२४=१२६७ ई.) प्रस्तुत अभिलेख धार जिले में अमझेरा के पास वलीपुर में एक स्मारक स्तम्भ पर उत्कीर्ण कहा जाता है। इसका उल्लेख श्री डफ द्वारा सम्पादित अभिलेखों की सूचि में पृष्ठ १९८ पर; ए. रि. आ. डि. ग., संवत् १९७३, क्र. ९८ पर; एवं ग. रा. अभि. द्वि., क्र. १२६ पर किया गया है। परन्तु स्तम्भ का इस समय कोई पता नहीं है।
प्राप्त विवरण के अनुसार अभिलेख ५ पंक्तियों का है। इसकी भाषा संस्कृत है। इसमें परमार नरेश जयसिंह का उल्लेख है। अभिलेख की तिथि संवत् १३२४ लिखी है।
(७५) पठारी का जसिंहदेव द्वितीय का प्रस्तर खण्ड अभिलेख
.: (संवत् १३२६=१२६९ ई.) ___ प्रस्तुतं अभिलेख एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है जो विदिशा जिले के अन्तर्गत कुरवाई केथोरा परगने में पठारी नामक स्थान में एक तालाब के पूर्वी किनारे पर लगा है। इसकी खोज १८७६ ई. में कनिंघम ने की थी। इसके उल्लेख आ. स. रि, भाग १०, पृष्ठ ३१; प्रो. रि. आ. स. वे. स., १९१३-१४, पृष्ठ २६, क्र. २६४४ ; भण्डारकर की उत्तरी अभिलेखों की सूचि क्र. ५७५; कीलहान की सूचि क्र. २३२; ग. रा. अभि. द्वि., क्र. १२७; ए. रि. ई. ए., १९६३-६४, क्र. सी २०३१ पर किए गये हैं।
अभिलेख ७ पंक्तियों का है जिसमें अंतिम पंक्ति शेष की आधी है। इसका आकार ३७४३० सें. मी. है। इसके अक्षरों की बनावट १३वीं सदी की नागरी लिपि है। अक्षरों की
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