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परमार अभिलेख
___ अक्षरों की बनावट १३वीं सदी की नागरी लिपि है । अक्षरों की लम्बाई प्रायः २.५ सें. मी. है। अक्षर बनावट में अच्छे नहीं हैं। इसकी भाषा संस्कृत है परन्तु अत्यन्त त्रुटिपूर्ण है। इस पर बोलचाल की भाषा का प्रभाव साफ दिखाई देता है। सारा अभिलेख गद्य में है। वर्ण विन्यास की दृष्टि से ख के स्थान पर ष एवं य के स्थान पर ज का प्रयोग है। क्रियापद में वर्तमान काल का प्रयोग है। माता शब्द में विभक्ति का लोप है। इसका लेखक कोई सामान्य व्यक्ति था।
तिथि प्रारम्भ में केवल अंकों में संवत् १३२० वैसाख सुदि ३ गुरुवार है। यह गुरुवार १२ अप्रेल, १२६३ ई. के बराबर निर्धारित होती है।
अभिलेख जयसिंहदेव द्वितीय के शासन काल का है जो परमार राजवंश का नरेश था। इसका प्रमुख ध्येय पुमानि के नायक मदनसिंह देव के श्रेय हेतु (उसकी पत्नी) देवी सानुमति द्वारा दान देने का उल्लेख करना है।
पंक्ति २ में नरेश जयसिंहदेव द्वितीय के राज्य में भैलस्वामिदेवपुर (भिलसा) का उल्लेख है। आगे कुप्तका में ठहरी अथवा कुप्तका की निवासिनी देवी सानुमति द्वारा मनदसिंहदेव के श्रेय के निमित्त दान का विवरण है। यहां मदनसिंहदेव की उपाधि पंडित ठकुर दी हुई है। उस को पुमानि का नायक कहा गया है। अत: वह पुमानि नामक प्रदेश का प्रान्तपति रहा होगा। देवी सानुमति संभवतः उसकी पत्नी थी। दान में द्वोर्मेल दिया गया था जो संभवतः किसी स्थान का नाम रहा होगा। दान संभवतः उसी देवता के लिए था जिसके मंदिर में प्रस्तुत प्रस्तर खण्ड लगा हुआ था। वह देवता संभवत: भलस्वामिदेव ही रहा होगा। आगे उक्त दान को भंग करने की स्थिति में गदर्भ-शाप है। परन्तु इस भाग की भाषा कुछ त्रुटिपूर्ण है।
__ अभिलेख का महत्व इस तथ्य में है कि १२६३ ई. में भैलस्वामिपुर नगर का नरेश जयसिंहदेव के साम्राज्य के अन्तर्गत होने का उल्लेख किया गया है । इसमें कोई शंका ही नहीं है कि यह नरेश परमार राजवंशीय जयसिंह-जयवर्मन द्वितीय है जिसके १२५५ ई. एवं १२७४ ई. के मध्य अनेक अभिलेख प्राप्त होते हैं। इससे पूर्व दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश ने १२३३३४ ई. में भिलसा पर आक्रमण कर वहां के दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। संवत् १३३१ के मांधाता अभिलेख (क्र. ७६) के श्लोक ४८ से ज्ञात होता है कि जयसिंहदेव के पिता देवपालदेव ने भैल्लस्वामिपुर के पास युद्ध में एक म्लेच्छाधिप को मारा था । यह संभवतः वह मुसलिम प्रान्तपति था जो इल्तुतमिश द्वारा भिलसा क्षेत्र में नियुक्त किया गया था। १२३९ ई. में अपनी मृत्यु से पूर्व देवपालदेव ने इस भूभाग को स्वतंत्र करवा लिया था। इसके बाद अर्द्धशती तक भिलसा क्षेत्र परमारों के अधिकार में रहा। बल्बन ने नरवर के जजपेल्ल पर आक्रमण किया था, परन्तु इस भूभाग तक नहीं आया। परन्तु १३०५ ई. में अलाऊद्दीन खिल्जी (१२९६-१३१६ ई.) ने समस्त मालव प्रदेश के साथ इस भूभाग पर आक्रमण कर अपने अधिकार में कर लिया।
भौगोलिक स्थानों की पहचान वर्तमान में सरल नहीं है। परन्तु ये सभी स्थल भिलसा से बहुत दूर स्थित नहीं रहे होंगे।
(मूलपाठ) १. ओं। संवत् १३२० वर्षे वैशाष (ख) सुदि [३] गुर[1] अद्येह) २. [श्री भै]लस्वामिदेवपुरे श्रीजयसिंहदे[व] राज्ये पुमा३. नि] न्ना (ना)यक पंठ मदनसी (सिं).
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