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________________ भिलसा अभिलेख २८छ ४२. हमारे द्वारा दिये गये इस धर्मदान को मानना व पालन करना चाहिये । और कहा गया है... सगर आदि अनेक नरेशों ने वसुधा भोगी है और जब २ यह पृथ्वी जिसके आधिपत्य में रही है तब २ उसी को उसका फल मिला है ॥२५॥ .. स्वयं के द्वारा दी गई अथवा दूसरे के द्वारा दी गई भूमि का जो हरण करता है वह पितरों के साथ विष्टा का कीड़ा बन कर रहता है ।।२६।। १६. भूमि का दाता साठ हजार वर्षों तक स्वर्ग में रहता है। उस का हरण करने वाला और हरण करने की स्वीकृति देने वाला उतने ही वर्ष नरक में वास करता है ॥२७॥ - सभी उन भावी नरेशों से रामभद्र बार २ याचना करते हैं कि यह सभी नरेशों के लिये समान रूप धर्म का सेतु है । अत: अपने २ कालों में आपको इसका पालन करना चाहिये ।।२८।। __ इस प्रकार लक्ष्मी व मनुष्य जीवन को कमलदल पर पड़ी जलबिन्दु के समान चंचल समझ कर और इस सब पर विचार कर मनुष्यों को परकीर्ति नष्ट नहीं करना चाहिये ।।२९।। ४९. संवत् १३१७ ज्येष्ठ सुदि ११, गुरुवार आज श्री मंडपदुर्ग में महाराजाधिराज श्रीमान् जयवर्म५०. देव द्वारा नियुक्त सांधिविग्रहिक पंडित श्री मालाधर की सम्मति से ... श्रेष्ठतम पंडित गविश के पुत्र हर्षदेव नामक विद्वान द्वारा यह विशुद्ध राजशासन लिखा ::: गया ॥३०॥ . - विद्वानों में श्रेष्ठ गोसेक नामक (गुरु के) शिष्य आम देव, जो अपार स्मृति शास्त्र के ज्ञाता, व्याकरण शास्त्र के विद्वान हैं, द्वारा नरेश के इस लेख का संशोधन किया गया ॥३१॥ ५२... यह शिल्पी कान्हड़ द्वारा उत्कीर्ण किया गया। ५३. इसका दूतक महाप्रधान राजश्री अजयदेव है । ये हस्ताक्षर स्वयं महाराज के हैं । भिलसा का जयसिंहदेव द्वितीय का पुरातत्व संग्रहालय प्रस्तर अभिलेख (संवत् १३२० = १२६३ ई.) .. प्रस्तुत अभिलेख एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है, जिसकी खोज १९५८ में हुई थी। इसका उल्लेख एपि. इं., भाग ३५, पृष्ठ १८७ पर किया गया । प्रस्तर 'खण्ड बर्तमान में पुरातत्व संग्रहालय, भिलसा में सुरक्षित है। वर्तमान में भिलसा का नाम बदल कर विदिशा कर दिया गया है, यद्यपि विदिशा वास्तव में आधुनिक बेसनगर है। बेसनगर बेतवा नदी के दूसरे किनारे पर भि (भी) लसा के सामने स्थित है । भिलसा का प्राचीन नाम भी भल्लस्वामिन् था जो वहीं पर प्रमुख रूप से अचित सूर्यदेव का अपर नाम था । यह नाम ९वीं सदी के एक अभिलेख में लिखा प्राप्त होता है (एपि. इं., भाग २०, पृष्ठ २१० व आगे) । विदिशा पृथक रूप से एक प्रमुख नगर था जो प्राचीन आकर (दशार्ण) प्रदेश की राजधानी था। अभिलेख कुल १० पंक्तियों का है। इसका आकार ४९X २९ से. मी. है। इसकी प्रथम दो पंक्तियां पूरी लम्बाई की है। इनमें प्रत्येक में प्रायः २० अक्षर उत्कीर्ण हैं। इनके नीचे बाई ओर आधे भाग में एक स्त्री व गदर्भ के रेखा चित्र बने हैं। शेष आधे दाहिने भाग में बाकी अभिलेख उत्कीर्ण है। इसमें पंक्ति क्र. २ में ८ अक्षर हैं एवं अंतिम पंक्ति में केवल २ ही अक्षर हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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