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परमार अभिलेख
२४. श्रेष्ठ ब्राह्मणों, वहां के निवासियों, पटेलों और ग्रामीणों को आज्ञा देते हैं कि आपको विदित हो कि श्री मण्डप दुर्ग में ठहरे हुए
२५. हमारे द्वारा संवत्सर तेरह सौ सतह में संसार की असारता को देखकर, उसी प्रकार
इस पृथ्वी का आधिपत्य वायु में बिखरने वाले बादलों के समान चंचल है, विषयभोग प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाला है, मानव प्राण तिनके के अग्रभाग पर रहने वाले • जलबिन्दु के समान है, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा होता है || २४||
२७. इस सब पर विचार कर दान के अदृष्टफल को स्वीकार कर, प्रतिहार श्री गंगदेव के
पास से ( लेकर ) यह बड़ौद ग्राम
२८. तीन ब्राह्मणों के लिये दिया गया और उस प्रतिहार श्री गंगदेव के द्वारा संवत १३१७ अग्रहण शुक्ल तृतीय तिथि को
२९. रविवार को पूर्व आषाढ़ नक्षत्र में, शूल नामक योग में, श्री अमरेश्वर क्षेत्र में रेवा के दक्षिणी तट पर रेवा व कपिला के
३०. संगम पर स्नान कर चर व अचर के स्वामी भगवान श्री अमरेश्वर देव की पंचसामग्री द्वारा विधिपूर्वक अर्चना कर, जीवन को बिजली के समान चंचल जानकर
३१. नवगांव स्थान से आये, भार्गव गोली, भार्गव च्यवन आप्नवान और्व जमदाग्नि पांच प्रवरों वाले, माध्यंदिन
३२. शाखा के अध्यायी, द्विवेद वेद के पौत्र, पाठक हरिदर्शन के पुत्र अग्निहोत्र माधव शर्मा ब्राह्मण के लिये चार
३३. ४ भाग, टकारी स्थान से आये गौतम गोत्री, गौतम आंगिरस औचथ्य इन तीन प्रवरों वाले, आश्वलायन शाखा के अध्यायी
३४. द्विवेद लाषू के पौत्र, द्विवेद लीमदेव के पुत्र चतुर्वेद जनार्दन शर्मा ब्राह्मण के लिये एक १ 'भाग, घटाउषरि स्थान
३५. से आये भारद्वाज गोत्री, आंगिरस वार्हस्पत्य भारद्वाज तीन प्रवरी, माध्यंदिन शाखा के अध्यायी
३६. दीक्षित केकु के पौत्र, दीक्षित दिवाकर के पुत्र दीक्षित धामदेव शर्मा ब्राह्मण के लिये एक १ भाग, इस प्रकार इन तीनों
३७. ब्राह्मणों के लिए छह भाग इस बड़ौद ग्राम (में), सभी चारों सीमाओं से शुद्ध, वृक्षमाला से व्याप्त, हिरण्य भाग
३८. भोग उपरिकर सभी आय समेत साथ में निधि व गड़ाधन माता पिता व स्वयं के पुण्य व यश की वृद्धि के लिये
३९. चन्द्र सूर्य समुद्र व पृथ्वी के रहते तक परमभक्ति के साथ देव व जा रहे को छोड़कर, शासन द्वारा जल हाथ में लेकर
(द्वितीय ताम्रपत्र- पृष्ठभाग )
४०. दान दिया है । उसको मानकर वहां के निवासियों पटेलों व ग्रामीणों द्वारा जो भी दिया जाने वाला भाग भोग कर हिरण्य आदि आज्ञा सुनकर
ब्राह्मण द्वारा भोगे
४१. सभी इनके लिये देते रहना चाहिये और इसका समान रूप से धर्मफल जानकर हमारे व अन्य वंशों में उत्पन्न होने वाले भावी भोक्ताओं को
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