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मांधाता अभिलेख
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४७. . . 'देव ने एक हल भूमि दी, ग्राम के ईशान (उत्तर पूर्व) दिशा में । बुद्ध' ..." ४८. • • 'आय से प्रति मास १ द्रम्म दिया । इस प्रकार से दिया गया प्रतिदिन ..... ४९. . . 'मध्य की दो दुकानें । एक घर । डोडराज। कम्बलसिंह के पुत्र ने... .. ५०. · · ·आपको इसे मानना चाहिये । अट्ठाईस करोड़ भयंकर नरकों का. . . ५१. . . 'विद्वान वामन ब्राह्मण ने निश्चय से यह प्रशस्ति अच्छे अलंकरण हेतु लिखी. . . ५२. . . 'चार जौहरियों द्वारा ग्राम की पश्चिम दिशा में राउता ग्राम में भूमि दी. . .
(७२) मांधाता का जयवर्मदेव द्वितीय का ताम्रपत्र अभिलेख
___ (सं. १३१७=१२६० ई.) प्रस्तुत अभिलेख दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है जो १९०४ में नर्मदा के किनारे मांधाता के पास प्राप्त हुए थे। इसका उल्लेख स्थानीय समाचार पत्रों; धार स्टेट के पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट्स; एपि. इं., भाग ९, १९०७-८, पृष्ठ ११७ व आगे पर किया गया। वर्तमान में ये केन्द्रीय संग्रहालय, नागपुर में सुरक्षित हैं।
ताम्रपत्रों का आकार ४३.५४ २७.३ सें. मी. है। इनमें लेख प्रथम ताम्रपत्र पर एक ओर एवं दूसरे पर दोनों ओर खुदा है। दोनों में दो-दो छेद हैं जिनमें तांबे की कड़ियां पड़ी हैं। अभिलेख ५३ पंक्तियों का है। प्रथम ताम्रपत्र पर १९ व दूसरे पर क्रमशः २० व १४ पंक्तियां उत्कीर्ण हैं। दूसरे ताम्रपत्र पर अन्त में दोहरी पंक्ति के चौकोर में गरुड़ का रेखाचिन है। इसका शरीर मानव का एवं मुखाकृति पक्षी की है। इसका शरीर बाई ओर झुका है। मुख दाहिनी ओर है। चार हाथ हैं। दो अभिवादन की मुद्रा में हैं। तीसरा हाथ ऊपर उठा है। चौथे में फण उठाये एक नाग है। गरुड़ के बाल खड़े हैं। दाढ़ी है। आभूषण पहने हैं। वस्त्र उड़ रहे हैं। यह परमार वंश का राजचिन्ह है। _ अक्षरों की बनावट १३वीं सदी की नागरी है। अक्षरों की लम्बाई .८ सें. मी. है। अक्षर सुन्दर हैं व ध्यान से खुदे हैं। भाषा संस्कृत है एवं गद्यपद्यमय है। इसमें ३१ श्लोक हैं, शेष गद्य में है। व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से ब के स्थान पर व, श के स्थान पर स, र के बाद का व्यञ्जन दोहरा, म् के स्थान पर अनुस्वार बना है। कुछ स्थानों पर संधि का अभाव है। कुछ शब्द ही गलत हैं जिनको पाठ में सुधार दिया गया है। इनमें कुछ अशुद्धियां काल व प्रादेशिक प्रभाव को प्रदर्शित करती हैं।
अभिलेख में तीन तिथियां हैं। पंक्ति २५ में वर्ष संवत् १३१७ केवल शब्दों में है। पंक्ति २८-२९ में अंकों में संवत् १३१७ अग्रहण शुक्ल ३ रविवार नक्षत्र एवं योग सहित है। पंक्ति ४९ में अंकों में संवत् १३१७ ज्येष्ठ सुदी ११ गुरूवार है। इनमें दूसरी तिथि को भूदान की घोषणा की गई थी एवं अंतिम तिथि को शासन पत्र लिखवा कर निस्सृत किया गया। इस प्रकार अग्रहण मास ज्येष्ठ मास से पहले पड़ा था। अतः यह व्यतीत वर्ष कार्तिकादि विक्रम संवत् से संबद्ध है। इस आधार पर भूदान घोषित करने की तारीख रविवार ७ नवम्बर, १२६० ई., एवं शासन पत्र निस्सृत करने की तारीख गुरुवार १२ मई, १२६१ ई. के बराबर है।
इसका प्रमुख ध्येय जयवर्मदेव द्वितीय द्वारा प्रतिहार श्री गंगदेव से महुअड़ पथक में स्थित बड़ौद ग्राम लेकर, इसके ६ भाग कर, ३ ब्राह्मणों को दान करने का उल्लेख करना है । प्रतीत
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