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________________ २७० परमार अभिलेख १६. • • • उसके नाम से अपनी कीति के स्थल भूतल पर स्पष्ट रूप से उत्पन्न कीजिये । ऐसा कह कर परमेश्वर वडजानाथ ने . . · · ॥३०॥ जिसका वाक्पतिराज ऐसा नाम दिनरात फैल रहा था, वह मुंज कीतियों का पुंज पंचमुखी . . . . · नेत्रों को मृग शिशु की क्रीड़ा के समान चंचल प्रतीत होता था । वह किरणों से म्लान • .. १९. . . 'कुल उसमें कथा की भूमियां ॥३४।। उसका भाई सिंधुराज हुआ जो वसुधा पर प्रेम करने वाला था.. २०. . . ॥३६॥ जिसके नाम से एक सौ चार मेरू त्रिकुटा आदि नामक प्रासाद . . . २१. . . 'भयंकर पराक्रम वाले जिसके सन्मुख इन क्षुद्र नरेशों की क्या स्थिति ॥३... २२. . . 'श्री कार्तवीर्य के समान निर्माण किया अथवा धनुष की ध्वनि से निकले हुए... २३. . . अपने मित्र से भी अधिक ॥४१॥ जो देवकुल के वंश का निदर्शन करता है व वर्षा करता है। .. २४. · · ·यक्षस्थान पीठ पर कीड़े के समान नरेश जिसके कृत्यों को देखकर सुनकर . . . २५. . . 'प्रतापों के समान नगरी ग्रामों के दहन में फैलने वाली ज्वालाओं से पूर्ण इसको .. २६. . . 'जो एक बार युद्ध में इसकी समता नहीं कर सके बार २ रमणीय वृषभ के . . . २७. • • 'नरेशों को जन्म देने वाला पुनः पृथ्वी पर हुआ । अच्छे लक्षणवाली यदु वंश में .. २८. ३०. . . 'विष्णु के समान वह त्रिविधवीर मुकुटों से. . . ३१. . . 'अतिदीन यदुनरेश को भय के कारण दिशाज्ञान नहीं हो पाया ।।५४।।... ३२. · · 'रूचि रखने वाला सत्य पालन करने वाला, सज्जनों को मान्य । इस पर भी भगवान शंकर' .. ३३. . . शिवजी का उपासक श्री मलिकार्जुन नामक अवंति वासी ऋषि । . . . ३४. . . 'अपने द्वारा भोगे जा रहे मंडल में मंडलीक के द्वारा एकल्लदेव के लिये . . ३५. . . 'देव ने यह प्रदान किया । इस प्रकार गुवासा ग्राम का दान. . . ३६. . . 'एकल्लदेव पृथ्वी पर ।।... ॥ सम्वत् १३१४ वर्ष में माधवदि १ आज यहां . . ३७. · · ·तीन मात्रा वृक्षपंक्ति से व्याप्त सभी आय समेत ठकुर श्री हर . . . · · · श्रीमत् जयवर्मदेव के कल्याण राज्य में । ठकुर श्री हरदेव . . . • • 'देव के द्वारा ग्रहण किया हुआ, अपने भोगने के लिये प्राप्त हुआ है ऐसा मानकर वृक्षमालाओं से व्याप्त . . . ४०. · · · आज यहां श्री जयवर्मदेव के राज्य में महाप्रधान चादुरि . . . ४१. . . 'वृक्षमाला से व्याप्त, सब प्रकार की आय समेत, देव श्री वैद्यनाथ के लिये . . . ४२. · · · राजपुत्र श्री गोविन्दराज के पौत्र द्वारा राजश्री अरिसिंह देव ने ४३. ॥ आधा श्री वैद्यनाथ के लिये । आधा श्री अजयश्वर के लिये और ' . . ४४. जल संकल्पपूर्वक दिया । मौड़ी मंडल में नगर से आग्नेय (पूर्व-दक्षिण) दिशा... ४५. . . 'निगम कायस्थ पंडित श्री अर्जुन ने एक हल भूमि दी। .. ४६. गांव में । घरटौद ग्राम के स्वामी । - ‘बालसिंह ने ग्राम से दक्षिण . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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