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मोड़ी अभिलेख
४४ ॥ उदकेन प्रदत्त इति ।। मौड़ी मंडले पत्तनादाग्नेयां दिशि ] · ४५. नैगमकायस्थ पं श्री अर्जुनेन हर्लकस्य भूमी प्रदत्ता ।।....
४६. ग्रामे ।। घरटीदग्रामेधिप । राज ( विषाराज ? ) । वा (बा) ल सी (सिं) हेन ग्रामाद्दक्षिण देवेन हलैकस्य भूमी प्रदत्ता । ग्रामादीशान्यां दिशि ।। वु (बु) द्ध ( ? ) ४८. कादायान्मासं मासं प्रतिद्रम्म १ प्रदत्तः । तथादायानुदिनं प्र
४७.
४९. मध्य हट्टद्वयं ।। गृहैकं च ।। डोडराज । कम्व ( ब ) लसी (सिं) ह सुतेन
५०. नीयो भवद्भिः । अष्टाविंशति कोटयस्तु म ( न ) रकाणां च दारुणा: ' ५१. • यनविप्रेण विदुषा वामनेन वै । प्रशस्तिः सदलंका [णां] कृतेह ५२. भूमि: मणिवाय ४ ग्रामपश्च ( श्चि) म दिशायां प्रदत्ता महिराउता ग्रामे शु ( शुभमस्तु )
(अनुवाद)
१- ३. जिसका हृदय अशक्त हो रहा है उसकी कार्यसिद्धि को अवलम्बन देने वाले, मधु नामक दैत्य के विघ्न को नष्ट करके - जिनमें विघ्नयुगल के झुण्ड के समान भ्रान्त होकर नष्ट हो जाते हैं, सिद्ध नगरी के स्वामी एवं ब्रह्मा आदि देवगणों द्वारा साक्षात अर्चित ऐसे हेरम्ब ( गणेश) आपको विवेक प्रदान करें ॥४॥
• उत्तंक के लिये पर्वतों के दर्प का दलन करने वाला
३.
४.
'उठाया हुआ । सिंधु के पश्चिम में नंदिवर्द्धन नाम का पर्वत स्थित है, यमराज के तेजों की भुजा के समान...
५.
• ' गगन में विचरण करते हुए क्रीड़ा करने वाले भूमि पर स्थिति को निदर्शन करते हैं'
६.
७.
८.
१०.
११.
याचना न किया गया हुआ, गुप्त मंत्रिजन का वह अति निश्चित संकेत किया सत्य ही देखो समुद्र में कुवेर को
हुआ
।। १९ । । गर्भाधान में जिसका कारण अपने मुख रूपी बिल में प्रवेश के प्रभाव में जन्म देने वाली (सविती) प्रद्योतन (सूर्य) के प्रतिबिंब से गिरा हुआ
१२.
• उखाड़ी गई हुई धूली के उड़ने से प्रबल अंधकार में छुप गया हुआ सूर्यबिंब की शंका करता हूं कि तपे हुए शरीर को करकमल रूपी पुट से मानो धरती पर खींच लिया हो'
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परमार नामक नरेश प्रसिद्ध हुआ, उसके वंश में बाद में सैकड़ों नरेश होंगे नक्षत्र तुल्य, तेज के भंडार के समान, मुंदक ऋषि जिसके ताप से पीड़ित पृथ्वी विचलित होती है
• पृथ्वीपति ने ( उद्धार किया) || १४ | उसके वंश में एक वीर उत्पन्न हुआ जो लक्ष्मी के दर्प से जगत का परिपालन करने वाला था ..
१३.
• एक पांव से रण में विजयी होने वाला कोई तो भी उसमें उत्पन्न हुआ, दुष्टों का दमन करने वाला, शरीर से स्थिर इस वंश में 19
...
• खण्ड में सन्यासी पर्वत एवं नदियों के पुण्यतीर्थ हुए श्री वैरिसिंह ने सुवर्णों की तुलाओं का दान दिया
१४.
• मारने पर शव पर चरण रखा । हृदय में जिसका समावेश हो रहा है ऐसे इस सीयक पर ईशप्रिया (पार्वती) प्रसन्न हुई
१५. · · · ।।२६।। हूणों के उदक से सिंचित करके
रूधिरों से भीगी हुई यह मालव भूमि जिसको सीयक ने रक्तरूपी भोगी एवं दस हजार योद्धाओं के समूह
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