SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अत्रु अभिलेख २७३ पंक्ति ५ में ग्राम दान को भग्न करने के लिये शाप है । शाप कया वस्तुतः गाली ही है । इससे विदित होता है कि भूदान को सुरक्षित रखने हेतु किस प्रकार प्रयत्न किये जाते थे । संभवतः भूदान अपहरण अधिक मात्रा में होता रहा होगा । पूर्ववर्णित समस्त अभिलेखों में भूदान को सुरक्षित रखने हेतु शापयुक्त श्लोकों, राजाज्ञाओं, भावी नरेशों से विनतियां आदि के माध्यमों का सहारा लिया गया है। - अभिलेख में दानकर्ता नरेश जयसिंहदेव के वंश अथवा पूर्वजों के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है । परन्तु यह विश्वास करने के कारण हैं कि वह धार का परमार वंशीय नरेश था । इसकी उपाधि महाराजाधिराज से यह निश्चित है कि वह प्रभुसत्ता सम्पन्न नरेश था । उसके पूर्वज उदयादित्य के शासन काल में परमार साम्राज्य की उत्तरी सीमायें राजस्थान में झालरापाटन व शेरगढ़ तक विस्तृत थीं (अभिलेख क्र. २८, २९, ४५ आदि) । अत्रु इन स्थानों से बहुत दूर नहीं है । शेरगढ़ से तो यह उत्तरपूर्व में २० कि. मी. ही है। इस प्रकार यह मानना चाहिये कि इस समय परमार राज्य की उत्तरी सीमा चंबल नदी के दक्षिणी किनारे तक विस्तृत थी। परमार नरेश जयसिंह-जयवर्मन् द्वितीय के समय में चाहमान राजसिंहासन पर जैनसिंह आसीन था । उसके उत्तराधिकारी हम्मीर चाहमान के संवत् १३४५ के बाल्वन अभिलेख (एपि. ई., भाग १९, पृष्ठ ४५) से ज्ञात होता है कि जैवसिंह ने मंडपदुर्ग में स्थित परमार नरेश जयसिंह का विरोध किया एवं झम्पैथघट्ट के रणक्षेत्र में सैकड़ों मालव सनिकों को बंदी बना रणथमभोर भेज दिया । दशरथ शर्मा ने झम्पैथघाट का तादात्म्य चम्बल नदी पर स्थित झपैतघाट से किया है जो कोटा-सवाई माधोपुर रेललाईन पर लाखेरी स्टेशन के पास है । अतः यह निश्चित हो जाता है कि उपरोक्त स्थान परमार साम्राज्य की उत्तरी सीमा पर स्थित था। इसके अतिरिक्त हमारे अभिलेख के जयसिंह का तादात्म्य किसी भी प्रकार जैनसिंह चाहमान से नहीं किया जा सकता । इसका राजस्थानी रूप जेतसी या जैतसी होगा, जयसिंह नहीं हो सकता। भौगोलिक स्थानों में म्हैसडा अत्रु से ६ कि. मी. दूर भनैरा ग्राम है । भनैरा से ६० कि. मी. उत्तर पूर्व की ओर पेन्टा ग्राम है। इसकी शाहबाद तहसील अत्रु क्षेत्र से मिलती है। इस आधार पर अभिलेख के पंवीठ का समीकरण पेन्टा से करने का सुझाव है । (मूलपाठ) १. महाराजाधिराज श्री जयसिं.. २. घ(ह) देवेने (न) पंवीठ प्रतिपतौ (त्तौ) महा ३. कवि चक्रवत्ति ठकुर श्री नाराय४. ण(णाय) म्हैसड़ाग्राम (मः) सा (शा)सने (नेन) प्रदत्त (त्तः) [1] जो (यो) लो५. पयति तस्य माता (मातरं) गर्दभो (भः) चोदति [1] ६. सं १३[१४] वर्षः (वर्षे) [[] (अनुवाद) १. महाराजाधिराज श्री जयसिंह- .. २. देव के द्वारा पंवीठ प्रतिपत्ति में . ३. महाकवि चक्रवर्ती ठकुर श्री नारायण .. के लिये म्हैसड़ा ग्राम शासन द्वारा दिया गया ५. हरण करेगा उसकी माता को गर्दभ रमण करेगा। ६. संवत् १३१४ वर्ष में । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy