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परमार अभिलेख
(मूलपाठ)
१. ओं [11] संवत् १२८६ वर्षे] काति[क] सु(शु) दि... २. सु(शु) के दे[व] श्री उदल्मे (ये) स्व (श्व) र३. सनि (नि) [धे (धौ)] समस्त प्र[श]स्तोपेत्र (त)४. सम[धि] गत पंन्राह्वलंका (पंचशब्दालंका)
र विराजमान-महाराज६. श्री दे[व]पालदेव-कल्या७. ण-विजयराज्ये महामुद्रा व्या]८. पारे पंचकुल स्री (श्री) धामदेय (वे ? ) । [वितन्त्र]९. ति ।। ख--ही ग्रामे । त्र ( ? ) तो मधे (ध्ये) दा१०. -- आत्मीय-विभागमधे (ध्ये)। राय११. कूके उदकपूर्वके (कं) । वि (बि)स्वे ४ प्रदत १२. इत्यर्थे (थं) पंचमुष (ख) वांटण मिलित्वा १३. ------- प्रम (मा) णमितिः (ति) [1] १४. मंगलं माह (महा) श्री[ : ।]
(अनुवाद) १. सिद्धि हो । संवत् १२८६ वर्ष में कार्तिक शुदि... २. शुक्रवार को देव श्री उदयेश्वर ३. के सामने समस्त ख्याति से युक्त ४. पांच शब्दों के अलंकार को प्राप्त करने वाले ५. विराजमान महाराज ६. श्री देवपालदेव के कल्याण (कारी) ७. विजय (युक्त) राज्य में महामुद्रा के ८. व्यापार में पंचकुल (क) श्री धामदेव . . . (?) ९. ख. . ही ग्राम में.. . मध्य में १०. .. . स्वयं के विभाग के मध्य में ११. रायकूक के लिये (?) जल (हाथ में) लेकर ४ बिस्वे दान की। १२. इस हेतु पंचमुख पत्तन वाटण (?) मिला कर १३. ... ... .प्रमाण में १४. महाश्री मंगल करे।
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