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________________ मान्धाता अभिलेख रणकुशल जिसका खग मानो तीनों लोकों की रक्षा करने के लिए ही धारा नगरी के उद्धार करने के साथ ही त्रिधारता को धारण कर रहा है।॥१३॥ उसी के गणधर्म वाला, इन्द्र के समान शोभायक्त पत्र सभटवर्मन भतल पर धर्म में आरूढ़ हुआ।।१४।। सूर्य की कांति वाले दिग्विजयी जिसका प्रताप जलते हुए गुर्जर नगर में दावानल के बहाने से आज भी गर्जना कर रहा है ।।१५।। (उसके) स्वर्गलोक को जाने पर उसका पुत्र अर्जुन नरेश आज भी पृथ्वी मंडल को अपने बाहु पर कंकण के समान धारण कर रहा है ।।१६।। -- बाललीला के समान युद्ध में जयसिंह के पलायन करने पर जिसका यश दिक्पालों के हास्य के बहाने से दिशाओं में फैल रहा है ।।१७।। साहित्य एवं गायन विद्या के सर्वस्व निधि जिसने मानो सरस्वती देवी का पुस्तक व वीणा का भार ही उतार लिया हो।।१८।। तीन प्रकार के वीर जिसने अपनी कीत्ति तीन प्रकार से विकसित की, जगत को तीन प्रकार से पवित्र करने में उसके अतिरिक्त अन्य कौन ।।१९।। __ उसके पश्चात् अद्भुत त्यागशील एवं शृंगारी वह याचकों के दुर्भाग्य से एवं स्वर्ग रमणियों के पुण्य से स्वर्गलोक को गया ॥२०॥ उसके पश्चात् परमारवंश के चन्द्र हरिश्चन्द्र के पुत्र प्रतापवान देवपाल ने मालवभमि की रक्षा की ।।२१।। करकमलों द्वारा दान के पवित्र जल को सर्वत्र व्याप्त करने से (नरेश) देवपाल व (इन्द्र) देवपाल में कोई अन्तर विदित नहीं होता है ।।२२।। १७. यह नरनायक सब प्रकार से उदयशील होकर महुअड प्रतिजागरणक में १८. सताजुणा ग्राम में आये समस्त राजपुरुषों, श्रेष्ठ ब्राह्मणों आसपास के निवासियों, पटेलों व ग्रामीणों को आज्ञा देते हैं-आपको विदित हो १९. कि श्रीयुक्त माहिष्मती में ठहरे हुए हमारे द्वारा संवत्सर बारह सौ बयासी के भाद्रपद मास की पूर्णिमा को (दूसरा ताम्रपत्र-अग्रभाग) २०. सोमपर्व पर रेवा में स्नान कर, श्री दैत्यसूदन (विष्णु के मंदिर) के पास भगवान भवानीपति की विधिपूर्वक अर्चना कर, संसार की असारता देख कर, तथा__ इस पृथ्वी का आधिपत्य वायु में बिखरने वाले बादलों के समान चंचल है, विषयभोग प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाले हैं, मानवप्राण तिनके के अग्रभाग पर रहने वाले जलबिन्दु के समान है, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा होता है ।।२३।। २२. इस सब पर विचार कर, अदृष्ट फल को स्वीकार कर, आश्रम स्थान से आये वाजि माध्यंदिन शाखा २३. के अध्यायी, पराशर गोत्री, पराशर शक्तृ वशिष्ठ त्रिप्रवरी श्रोत्रिय दामोदर के पौत्र, श्रोत्रिय ब्रह्म के पुत्र श्रोत्रिय गंगाधर २४. शर्मा ब्राह्मण के लिये एक १ भाग; महावनस्थान से आये पवित्र गोत्री, गर्ग गौरि वीतां गिरस त्रिप्रवरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001130
Book TitleParmaras Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Society
File Size9 MB
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