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परमार अभिलेख सर्वानेवं भाविनो भूमि पालान् भूयो भूयो याचते रामभद्रः । सामान्योयं धर्मसेतुन पाणां काले काले पालनी
___ यो भवद्भिः ।।२६।। इति कमलदलावु (बु)विन्दु लोलां श्रियमनुचिन्त्य मनुष्यजीवितं च । सकलमिदं उदाहृतं च बुध (बुद्ध) वा न हि पु
रुपैः परकीर्तयो विलोप्या ।।२७।। इति । संवत १२८२ वर्षे भाद्रसुदि १५ गुरौ । दू । श्री मु ३ । रचितमिदं महासांधि८०. विग्रहिक पंडित श्री वि (बि) ल्हण-सम्मतेन राजगुरुणा मदनेन् । स्वहस्तोयं महाराजश्री
देवपालदेवस्य । मङ्गलं महाश्रीः ।।
अनुवाद (प्रथम ताम्रपत्र – पृष्ठ भाग) .१. ओं। ओं। पुरुषार्थों में सर्वश्रेष्ठ धर्म को नमस्कार ।
___ समस्त पृथ्वी के प्रतिबिंब स्वरूप भूमि को ग्रहण कर जो संसार को आनन्दित करते हैं ऐसे द्विजेन्द्र आपका कल्याण करें ।।१।।
रण में हत क्षत्रियों के रक्त से व्याप्त अस्त होते सूर्य के प्रतिबिम्ब के समान पृथ्वी जिस दानदाता के लिए लालिमा को धारण किए हुए है उस परशुराम की जय हो ।।२।।
जिसने अपनी प्राणेश्वरी (सीता) की वियोगाग्नि को युद्ध में मंदोदरी के अश्रुजल से बुझाया वह राम आप को श्रेय प्रदान करे ।।३।।
भीम के द्वारा जिसके चरण अपने मस्तक पर धारण किये गये, जिसने वंश को चन्द्र के समान (निर्मल) बनाया, वह युधिष्ठिर सदा विजयी हो ।।४।।
परमार कुल में सर्वश्रेष्ठ, कंस को जीतने वाले की महिमा वाला नरेश श्री भोजदेव नामक हआ जिसने सीमाओं तक पथ्वी को विजित किया ।।५।।
दिशाओं की गोद तरंगित होने पर जिसकी यशचंद्रिका उदित होते ही शत्रु नरेशों का यश कमलों के समान मुरझा गया ।।६।।
उसके (पश्चात्) उदयादित्य हुआ जो सदा उत्साह में कुतूहलपूर्ण, असाधारण वीर व श्रीयुक्त था और जो विरोधियों की अलक्ष्मी का कारण था ।।७।।
कल्पान्त के तुल्य महायुद्धों के होने पर जिसके तीखे बाणों द्वारा कितने अत्यन्त उच्च नरेश शक्तिशाली सेनाओं सहित उन्मूलित नहीं किये गये ? (महाप्रलय काल में वाय द्वारा कितने महापर्वत नहीं उखाड़े गये) ॥८॥ ..
उससे नरवर्मन् नरेश हुआ जिसने अपने शत्रुओं के मर्मस्थल छिन्न कर दिये । बुद्धिमान जो धर्म के उद्धार करने में व राजाओं के लिए सीमा स्वरूप था ।।९।।
प्रतिदिन प्रातःकाल स्वयं ब्राह्मणों के लिए ग्रामपद देने से उसने एक पांव वाले धर्म को अनेक पांव प्रदान कर दिये ।।१०।। ___ उसका पुत्र यशोवर्मन् हुआ जो क्षत्रियों में मुकुट रूप था। उस का पुत्र अजयवर्मन् था जो विजय व लक्ष्मी के लिए विख्यात था ।।११।। ___ उसका पुन विंध्यवर्मन् था जिसकी उत्पत्ति द्वारा (वंश) धन्य हुआ, जो वीर शिरोमणि था और गुर्जर (नरेश) को हराने में इस महाभुज ने (शक्ति) लगाई ।।१२।।
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