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परमार अभिलेख
पर्व वणित अभिलेखों के आधार पर अर्जुनवर्मन् के शासन की अवधि १२१०-१२१५ ई. ज्ञात होती है। प्रस्तुत अभिलेख के आधार पर यह अवधि एक वर्ष और अर्थात् १२१६ ई. तक बढ़ाई जा सकती है। अगले अभिलेख (क्र. ६३) से ज्ञात होता है कि १२१८ ई. में देवपालदेव राजसिंहासन पर आरूढ़ था। अतः अर्जुनवर्मन् के शासन का अन्त १२१६ एवं १२१८ ई. के मध्य किसी समय हो गया होगा। - अभिलेख में किसी भौगोलिक स्थान का उल्लेख नहीं है।
(मूलपाठ) १. ओं । स्वस्ति । संवत् १२७३ वर्षे शा२. के ११३८ भाद्रपद वदि . . . . . ३. शुक्रे.... . . . . . . . . ४. ... ... ........श्री म. . ५. अर्जुनदेव विजयराज्ये ......!
६. नियुक्त पं श्री केशव प्रश-- . ७. ति
(६३)
हरसूद का देवपालदेव कालीन प्रस्तरखण्ड अभिलेख
(सं. १२७५ = १२१८ ई.) प्रस्तुत अभिलेख एक प्रस्तरखण्ड पर उत्कीर्ण है जो १८५० ई. में पूर्वी निमाड़ जिले में हरसूद में एक ध्वस्त मंदिर में प्राप्त हुआ था। इसके उल्लेख क्रमशः एफ. इ. हाल ने ज. ए. सो. बं., १८५९, भाग २८, पृष्ठ १-८; रि. आ. स. वे. स., भाग १०, पृष्ठ १११-१२; ज. अमे. ओ. सो., भाग ६, पृष्ठ ५३६-३७, कीलहान ने इं. ऐं., १८९१, भाग २०, पृष्ठ ३१०-१२; उत्तर भारतीय अभिलेखों की सूचि क्र. २०३ पर किया। प्रस्तरखण्ड वर्तमान में अमेरिकन ओरियंटल सोसाईटी ग्रन्थालय, न्य हेवन, अमेरिका में सुरक्षित है।
__ अभिलेख का आकार ३३.५४ ३१ सें. मी. है। इसमें १८ पंक्तियां हैं। प्रस्तर खण्ड हरे रंग की चिकनी कठोर शिला है। लेख के नीचे मध्य में दोहरी पंक्तियों के चतुष्कोण में शिव का रेखाचित्र बना है। इसके दाहिनी ओर चार व बांई ओर तीन स्त्री-पुरुषों के रेखाचित्र हैं जो सभी हाथ जोड़े खड़े हैं। संभवत. ये सभी मंदिर-निर्माता कुटम्ब के सदस्य हैं।
... अक्षरों की बनावट १३ वीं सदी की नागरी लिपि है। अक्षर सुन्दर गहरे खुदे हैं । अभिलेख की स्थिति अच्छी है। अक्षरों की लम्बाई १ से १॥ सें. मी. है। भाषा संस्कृत है एवं गद्य-पद्यमय है। इसमें विभिन्न छन्दों में १४ श्लोक हैं। शेष गद्य में है। यह एक प्रशस्ति है, परन्तु त्रुटियों से भरपूर है। इसका लेखक देवशर्मन् कोई विशिष्ट कवि नहीं था।
____ व्याकरण के वर्णविन्यास की दृष्टि से व के स्थान पर व, स के स्थान पर श, श के स्थान पर स, म् के स्थान पर अनुस्वार, ख के स्थान पर ष बना दिये गये हैं। र के बाद का व्यञ्जन दोहरा है। कुछ अन्य भी त्रुटियां हैं. जो पाठ में सुधार दी हैं।
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